- सुप्रीम कोर्ट ने दी अधिकार को मान्यता
नई दिल्ली। केरल राज्य के अकूत धनसंपदा वाले पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन में त्रावणकोर के राजपरिवार का भी अधिकार है। देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी अब राजपरिवार के अधिकार को मान्यता दे दी है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि तिरुअनंतपुरम के जिला जज की अध्यक्षता वाली कमिटी फिलहाल मंदिर की व्यवस्था देखेगी। मुख्य कमिटी के गठन तक यही व्यवस्था रहेगी। मुख्य कमिटी में राजपरिवार की भी अहम भूमिका रहेगी। मालूम हो कि मंदिर प्रबंधन को लेकर नौ साल से विवाद चल रहा था। यह मंदिर तब सुर्खियों में आया था जब इसकी तिजोरियों में अकूत संपदा का खुलासा हुआ था। अब यह दुनिया के सबसे धनी मंदिर में शुमार होता है। जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच ने करीब तीन महीने तक जिरह सुनने के बाद पिछले साल 10 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख दिया था। याचिका में केरल हाई कोर्ट के 31 जनवरी, 2011 के फैसले को चुनौती दी गई थी। एससी ने 2 मई, 2011 को केरल एचसी के फैसले पर रोक लगा दी थी जिसमें और सरकार से मंदिर के प्रबंधन और संपत्तियों को टेकओवर करने को कहा गया था। एससी ने ए से लेकर एफ तिजोरियों तक में मौजूद वस्तुओं की इन्वेंट्री के भी निर्देश दिए थे। हालांकि कहा गया था कि बी तिजोरी को बिना एससी के स्पष्ट आदेश के नहीं खोला जाएगा। इन्वेंट्री तैयार करते वक्त ही यह अंदाजा लगना शुरू हो गया था कि मंदिर में करीब एक लाख करोड़ रुपये के जवाहरात मौजूद हैं। इसके बाद एसी ने मीडिया से मंदिर के खजाने को लेकर अटकलबाजी करने से रोक दिया। मंदिर परिवार की सुरक्षा एक आईपीएस अधिकारी के हवाले कर दी गई। सुनवाई के दौरान केरल सरकार और राजपरिवार, दोनों ने ही कहा था कि वे मंदिर की तिजोरियों में मिली संपदा पर कोई दावा नहीं करना चाहते क्योंकि यह सब मंदिर का है। एससी ने फिर जवाहरात को सुरक्षित रखने के निर्देश दिए थे। इसके अलावा तत्कालीन सीएजी विनोद राय से 2008-14 के बीच मंदिर ट्रस्ट के खर्च का ऑडिट करने को कहा गया। इन्वेंन्ट्री के लिए एससी के पूर्व जज केएसपी राधाकृष्णन के नेतृत्व में एक सिलेक्शन कमिटी बनाई गई थी। स्थानीय लोग और पुजारी मानते हैं कि मंदिर की बी तिजोरी शापित है। जो भी इसे खोलने की कोशिश करेगा, उसपर दुर्भाग्य टूट पड़ेगा। छठी शताब्दी में बने इस मंदिर का मैनेजमेंट पिछले 1000 से ज्यादा साल से त्रावणकोर का राजपरिवार कर रहा है। मगर एक आईपीएस अधिकारी की याचिका से 2011 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। बता दें कि परंपरागत रूप से इस मंदिर का प्रबंधन त्रावणकोर का राजपरिवार ही देखता आया है जिसकी कमान इस वक्त मार्तंड वर्मा के हाथ में हैं।