मदरलैंड संवाददाता, भैरोगंज

राज्य सरकार के द्वारा मत्स्य पालन में दिये जा रहे प्रोत्साहन का असर अब जमीन पर दिखने लगा है। किसान जो कभी निराशा के गर्त में थे।उर्वरक, बीज,कीटनाशक और मजदूरों की किल्लत के कारण परम्परात खेती से उन्हें फसल दर फसल नुकसान हो रहा था। वे आज मतस्य पालन से मालामाल हो रहे हैं।
मतस्य पालन के क्षेत्र में बगहा-1 प्रखण्ड के नड्डा पंचायत निवासी  युवा किसानों के लिए एक नजीर बन कर उभरे हैं।
ये बताते हैं कि शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी पेशा या खेतीबाड़ी दो ऑप्शन थे। पैतृक तौर पर उनके पास खेती की जमींन थी। इसलिए उन्होंने खेती करना मुनासिब समझा।परम्परात खेती से समुचित लाभ नहीं मिलता था। अक्सर इसबप्रकार की खेती में  नुकसान उठाना पड़ा था। तभी मतस्य पालन में भाग्य आजमाने का विचार आया।  फिलहाल मतस्य पालन में अच्छी आर्थिक संभावनाओं को देखते हुये आज कई युवा इनक्की  राह पर चल पड़े हैं और लाखों रुपये की आमदनी कर रहे हैं।
इस प्रखंड के नड्डा, बांसगांव मंझरिया पंचायत के अनेक कृषक अब मतस्य पालन कि तरफ मुड़ गए है। यहाँ नये नये तालाबों की खुदाई हो रही है। परम्परागत रूप से धान, गेहूं ,तिलहन व गन्ने की खेती करने वाले किसान तालाबों का निर्माण कर मतस्य पालन से अधिक लाभ उठा रहें हैं। किसानों कि मानें तो फसलों कि खेती में अब पुराने फायदे नहीं हैं। बढते बीज, खाद, कीटनाशक के मूल्य तथा बढी हुई मजदूरी दर एंव पलायन से मजदूरों कि कमी सबसे बड़ा कारण है। जिसके कारण किसानों को विभिन्न फसलों की खेती से मन माफिक फायदा नहीं होता ।
किसान मतस्य पालन में अपना आर्थिक भविष्य बना रहे हैं। इस क्षेत्र के गांव नड्डा, बांसगांव, परसौनी, भोलापूर-खरहट, चमवलिया में लगातार तालाबों की संख्या तेजी बढ़ रही है।पहले मछली जीरे (सीड्स) यूपी के कप्तानगंज या अन्य दुरस्त स्थानों से लाये जाते थे। परन्तु  तालाबों कि बढती संख्या तथा मछली जीरों (सीड्स)  की खपत और अत्यधिक मांग कि वजह से विगत वर्षों पहले ‘आर्य मतस्य हैचरी’ की स्थापना  परसौनी गांव के किसान राजेश सिंह ने किया। राजेश अपना आदर्श डब्लू सिंह को ही मानते है। उन्होंने बताया मतस्य विभाग के प्रोत्साहन से उक्त हैचरी की स्थापना हुई थी। जिसके उद्घाटन अवसर पर क्षेत्र के तमाम किसानों  के साथ बिहार राज्य के मतस्य निदेशक ,पटना,  उपस्थित हुए थे। जिसमें वे उपस्थित किसानों को मत्स्य पालन के लाभों से अवगत कराया था।  इन फसलों में समुचित फायदा नहीं होता था। प्रति एकड़ धान, गेहूं आदि फसलों से जहाँ 13 से 14 हजार रूपयों की आमदनी होती थी। वहीं आज वैज्ञानिक ढंग से मतस्य पालन में प्रति एकड़ सालना एक से डेढ लाख रूपयों की शुद्ध आमदनी है।
इनके भाई का कहना है की बर्ष  2002 में बनारस यूनिवर्सिटी के हरिश्चंद्र डिग्री कालेज से भूगोल विषय मे आनर्स करने के बाद विश्वविद्यालय पंतनगर,उत्तराखंड जाकर मतस्य पालन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उसके बाद मतस्य पालन से जुड़ गये ।
आज ये भरपूर आर्थिक लाभ उठा रहे हैं। अपने पुराने तालाब के अलावे अपनी जमीन में नये तालाब की खुदाई सरकारी सहायता से की जा रही है।  नये तालाबों के बेड(बांध) पर वन विभाग के सहयोग से विभिन्न प्रकार के  पौधरोपण किया गया था। ये पौधे आज वृक्ष बन गए हैं।इसके अलावे पोखर में डक(बतख) पालन तथा सब्जी की खेती से आमदनी को गुणात्मक रूप से बढाई गई है। कर्मवीर प्रसाद द्विवेदी ,मतस्य प्रसार पर्वेक्षक ,बेतिया का कहना है कि बिहार का पूर्वी एवं पश्चिमी चम्पारण जिला मतस्य पालन के लिये सर्वोत्तम स्थान के लिये चयनित हुआ है। यहाँ मीठे पानी के जल भंडारण में मछली पालन की भरपूर संभावना है। अतः नीली क्रांति योजना के तहत किसानों को प्रोत्साहित करने के लिये पचास प्रतिशत अनुदान तालाब खुदाई के पश्चात दी जाती है।
 मछली पालन से पर्यावरण संरक्षा तथा जल संचय होता है। जो जलवायु के लिये जरूरी है।
यहाँ किसानों में मतस्य पालन से जुड़ने में गहरी रूचि दिखाई दे रही है।  नये तालाबों का निर्माण एंव कृषकों में मतस्य पालन में बढ रही रूचि सब कुछ ऐसा हीं चलता रहा तो,आने वाले बर्षों में मछली पालन के क्षेत्र में भैरोगंज एरिया हब के तौर स्थापित हो जायेगा

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