उर्दू के मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज्म ‘हम देखेंगे’ पर हंगामा जारी है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता अमित मालवीय ने कहा है कि उर्दू और फैज पर चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है। दोनों ही प्रासंगिक नहीं हैं। यह इस्लामिक नारों के उपयोग के बारे में है, जो कि कैंपस में, खासतौर पर अल्पसंख्यक संस्थानों में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध में लगाए जा रहे हैं। यह चिंता का विषय है।

असल में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर (IIT-K) ने एक समिति गठित की है, जो यह निर्धारित करेगी कि क्या फैज अहमद फैज की कविता ‘हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ हिंदू विरोधी है। फैकल्टी सदस्यों की शिकायत पर यह समिति का गठन किया गया है। फैकल्टी के सदस्यों ने कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने यह ‘हिंदू विरोधी गीत’ गाया था।

समिति इसकी भी जांच करेगा कि क्या स्टूडेंट्स ने शहर में जुलूस के दिन निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया, क्या उन्होंने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की और क्या फैज की कविता हिंदू विरोधी है। कविता के बोल हैं, “लाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से। सब भूत उठाए जाएंगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएंगे। सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे। बस नाम रहेगा अल्लाह का। हम देखेंगे। इसकी अंतिम पंक्ति ने बवाल खड़ा कर दिया है।

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