महान धावक मिल्खा सिंह के निधन के साथ ही एक युग समाप्त हो गया है। 91 वर्षीय मिल्खा सिंह अपने पूरे जीवनकाल में प्रेरणास्रोत बने रहे। हर खेल का खिलाड़ी उनसे प्रेरित रहा है। जीवन के अंतिम समय तक वह सभी के लिए एक मिशाल बने रहे। उन्होंने जीवन मूल्यों के साथ ही फिटनेस और स्थास्थ्य के लिए युवाओं के साथ ही सभी लोगों का प्रेरित किया है। वह कठोर परिश्रम के पक्षघर रहे हैं। रिकार्ड तोड़ने वाला प्रशंसक भी मिल्खा को मानता है अपना आदर्श, दिवंगत महान धावक मिल्खा सिंह को अपना आदर्श मानने वाले उनके प्रशंसक और धावक परमजीत सिंह ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वह हमेशा उनके साथ बिताए समय को याद रखेंगे। परमजीत ने मिल्खा की प्रेरणा से ही 38 साल बाद उन्हीं का राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ा था। परमजीत ने मिल्खा का 400 मीटर का राष्ट्रीय रिकार्ड 38 साल बाद साल 1998 में तोड़ा था। मिल्खा ने 38 साल पहले रोम ओलंपिक में राष्ट्रीय रिकार्ड बनाया था जिसमें वह 45.6 सेकेंड के समय से कांस्य पदक से 0.1 सेकेंड से रह गये थे। 91 वर्षीय मिल्खा सिंह का शुक्रवार रात को निधन हो गया था।
परमजीत ने कहा, ‘मिल्खा जी इतने उदार थे कि जब मैंने उनका राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ा था तो मुझे चंडीगढ़ में उनके घर पर रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्होंने मुझसे कहा था कि मुझे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करते रहना चाहिए। वह काफी अनुशासित थे और कड़ी मेहनत करते थे।’गोलकीपर गुरप्रीत को भी मिलती है प्रेरणा, भारतीय फुटबॉल टीम के गोलकीपर गुरप्रीत सिंह संधू ने कहा है कि उन्हें अब भी दिग्गज धावक मिल्खा सिंह के ये शब्द ‘तुम्हें रूकना नहीं है’ अब भी प्रेरित करते हैं। गुरप्रीत के अनुसार मिल्खा की इस सलाह से यूरोपीय कार्यकाल के दौरान उन्हें अच्छी सहायता मिली थी।, गुरप्रीत ने 2015 में चंडीगढ़ में एक समारोह में मिल्खा सिंह से पुरस्कार लेने के दिन को याद करते हुए कहा, ‘उन्होंने उन्होंने मुझ से कहा था, ‘कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।’
गुरप्रीत ने कहा, ‘उस समय, मैं एफसी स्टैबेक के साथ नॉर्वे में क्लब फुटबॉल खेल रहा था, जहाँ हर दिन खुद को साबित करने और शुरुआती टीम में जगह बनाने के लिए संघर्ष करना होता था। विदेश में रहते हुए यह एक बड़ी चुनौती थी, ऐसे भी दिन थे जब खुद का उत्साह बनाए रखना कठिन था।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि, मैं तब इस महान एथलीट की सलाह को याद करता था। वे एक महान प्रेरक थे और मुझे हर दिन मुझे प्रेरित करते थे।, इस गोलकीपर ने कहा, ‘उन्होंने मुझसे जो शब्द बोले वो आज भी मुझे याद हैं और प्रेरणा के बहुत बड़े स्रोत आगे भी बने रहेंगे। जब भी मैं अपने देश के लिए फुटबॉल के मैदान पर संघर्ष करूंगा तब उनके शब्द और आशीर्वाद मेरे पास रहेगा।’ गुरप्रीत 2014 में नार्वे के एफसी स्टैबेक के प्रतिनिधित्व के साथ यूरोप के शीर्ष डिवीजन में खेलने वाले पहले भारतीय फुटबॉलर बने थे। वह टीम के साथ 2017 तक बने रहे और इस दौरान 2016 में यूरोपा लीग (यूरोपीय फुटबॉल की दूसरी स्तर की क्लब प्रतियोगिता) में खेलने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने थे।

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