महाराष्ट्र में सीएम पद की चाहत में शिवसेना ने अपने पुराने साथी भाजपा का साथ छोड़ NCP और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर महाविकास आघाडी की सरकार बनाई। सरकार के गठन के बाद से लेकर अब तक बीते 2 महीनों में शिवसेना और NCP दोनों ने ही अपने वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने के लिए उनसे किए वादों पर कार्य करना शुरू कर दिया है किन्तु कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में अपने एजेंडा को शामिल कराने वाली कांग्रेस इस मामले में शिवसेना और NCP दोनों ही दलों से पिछड़ गई है।

त्रिशंकु सरकार में पोर्टफोलियो के विभाजन में पहले तो कांग्रेस के हिस्से में कोई विशेष या महत्वपूर्ण मंत्रालय नहीं आया और खुद पार्टी के कई बड़े नेताओं के बीच आपसी मतभेद और मनमुटाव के कारण भी कांग्रेस के मंत्री जनता के पक्ष में कोई बड़ा निर्णय नहीं ले पाए और ना ही कोई ऐलान अब तक कांग्रेस कर पाई है। यही कारण है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेता सरकार में होने के बाद भी अब असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। उन्हें इस बात का डर सताने लगा है कि कहीं उनका वोटबैंक नाराज होकर उनके हाथ से निकल ना जाए।

कांग्रेस के अंदर इनसिक्योरिटी की यह भावना तब और भी स्पष्ट हो गई, जब कांग्रेस के पूर्व मुंबई अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम एक चिट्ठी लिखी। मिलिंद देवड़ा ने इस चिट्ठी में स्पष्ट लिखा कि शिवसेना और NCP ने अपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के माध्यम से किए गए वादों पर काम करना शुरू कर दिया है जबकि कांग्रेस ने जनता से किए अपने वादों को लेकर अब तक कोई पहल नहीं की है।

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