मुंबई। वैश्विक महामारी कोरोना की पहली लहर के दौरान बैंक ऑफ बड़ौदा के मलाड शाखा प्रबंधक प्रमोद कुमार नौ दिनों तक ऑक्‍सीजन पर आश्रित रहे थे। कुमार के कोरोना पॉजिटिव होने के बाद जब बैंक के अन्‍य कर्मचारियों का टेस्‍ट कराया गया तो 7 अन्‍य कर्मचारी भी संक्रमित पाए गए। कोरोना से उबरने के बाद भी बैंक कर्मचारी ग्राहकों के साथ काम करने को लेकर डरे हुए थे। इसी दौरान अप्रैल के महीने में बैंक के खाताधारक महेंद्र प्रताप सिंह ने प्रमोद कुमार के सामने सभी बैंक कर्मचारियों के टीकाकरण करने की बात कही।
प्रमोद कुमार अपने कर्मचारियों और परिवार के सदस्‍यों के वैक्‍सीनेशन के लिए तैयार हो गए। वैक्‍सीनेशन कैंप की योजनाएं तैयार की गईं और कुल 40 लोगों को 800 रुपये प्रति डोज के हिसाब से वैक्‍सीनेशन की बात तय हुई। बताया जा रहा है कि 25 मई को अंतिम समय में कोरोना वैक्‍सीन की दूसरी डोज देने के लिए स्‍थान बदल दिया गया और उसे बैंक शाखा कार्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया। महेंद्र प्रताप सिंह और दो अन्य सदस्‍य उस दिन शीशियों के साथ एक आइस-बॉक्स लेकर पहुंचे। इन लोगों ने सभी से आधार कार्ड नंबर मांगा। इस दौरान जो रसीद दी गई उसमें को-विन का कहीं कोई जिक्र नहीं था। बैंक कर्मचारियों ने इसे देखा, लेकिन इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा।
पहला संदेह तब पैदा हुआ जब सभी 40 लोगों को अंतिम टीकाकरण प्रमाणपत्र नहीं दिया गया। इस घटना के बीस दिन बाद, एक बैंक कर्मचारी ने कुमार को नकली टीकाकरण घोटाले के बारे में व्हाट्सएप पर आई एक न्‍यूज फॉरवर्ड की। इस घोटाले में महेंद्र प्रताप सिंह का नाम शामिल था। कुमार ने कहा, सिंह और उसके साथी जिस तरह से व्‍यवहार कर रहे थे, उससे हमें अंदाजा ही नहीं लगा कि ये पूरी प्रक्रिया नकली है। सिंह का उनके बैंक में साल 2013 से खाता है। यही कारण है कि हमने उस पर भरोसा कर लिया।
माना जाता है कि बैंक ऑफ बड़ौदा के कर्मचारी, सिंह और उनके सहयोगियों के पहले शिकार थे। इन लोगों पर आरोप है कि उन्होंने पूरे मुंबई में नकली टीकों के साथ कम से कम नौ अभियान चलाए हैं। अब तक, पुलिस ने इस मामले में 10 प्राथमिकी दर्ज की हैं, जिसमें 2,680 पीड़ितों का पता लगाया जा चुका है जिन्‍हें कोरोना वैक्‍सीन के नाम पर खारे पानी का इंजेक्शन लगाया गया था और गिरोह ने इसके द्वारा 26 लाख रुपये की बड़ी रकम कमाई।
ज्ञात हो कि इस पूरे घोटाले का मास्‍टर माइंड 39 वर्षीय महेंद्र प्रताप सिंह है। 10वीं कक्षा से ड्रॉपआउट, सिंह पिछले 15 साल से मलाड मेडिकल एसोसिएशन में एक क्‍लर्क के रूप में काम कर चुका है। बतौर क्‍लर्क के तौर पर उसकी पहुंच 2,000 डॉक्टर, फार्मास्युटिकल एजेंटों और मार्केटिंग तक थी। घोटाला तब शुरू हुआ जब सिंह को इसलिए निकाल दिया गया क्‍योंकि वह एसोसिएशन का नाम और परिसर का गलत इस्‍तेमाल करने लगा था। इस पूरे घोटाले में शिवम अस्पताल के मालिक डॉ. शिवराज पटारिया और पत्नी नीता का नाम भी सामने आया है, जिन्हें सिंह अच्छी तरह से जानता था। बीएमसी के साथ एक निजी टीकाकरण केंद्र के रूप में सूचीबद्ध अस्पतालों में से एक शिवम अस्पताल को सरकार से 23,350 डोज 150 रुपये में दी थीं। इसमें से 22,826 का इस्तेमाल किया गया था। बीएमसी के सहायक आयुक्त संजय कुरहाडे का कहना है कि उन्होंने बची हुई खुराक वापस ले ली थी। मुंबई पुलिस का मानना ​​है कि अस्पताल ने जो खाली शीशियां पड़ी थीं उसमें ही पानी डालकर नकली अभियान चलाया गया है।

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