मथुरा। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने केंद्र की मोदी सरकार के 33 किलोवॉल्ट (केवी) के सब-स्टेशनों को पावर ग्रिड से जोड़ने के आदेश का विरोध किया है।फेडरेशन का कहना है कि यह एक तरह से ‘पिछले दरवाजे से बिजली क्षेत्र का निजीकरण का प्रयास है। एआईपीईएफ के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा,नया आदेश न केवल जनविरोधी है, बल्कि यह निजी क्षेत्र को पिछले दरवाजे से फायदा पहुंचाने का भी प्रयास है।इस मौके पर राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के प्रदेश अध्यक्ष वी पी सिंह और उसके सचिव प्रभात कुमार भी मौजूद थे।
केंद्र के राज्य सरकार को एक सितंबर को भेज आदेश के अनुसार,राज्य की बिजली वितरण कंपनियों के तहत संचालित सभी 33 केवी के बिजली सब-स्टेशनों को पारेषण कंपनियों के साथ मिलाया जाएगा। यह आदेश राज्य की पारेषण कंपनियों तथा केंद्र सरकार के पावर ग्रिड का संयुक्त उद्यम बनाने से संबंधित है। इसी तर्ज पर पावर ग्रिड को ऐसा ही आदेश केंद्र सरकार पहले ही जारी कर चुकी है। अधिकारियों ने कहा कि यदि 33 केवी के सब-स्टेशनों का विलय राज्य के विद्युत प्रसारण निगम के साथ किया जाता है,तब इससे उपभोक्ता सेवाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी। उन्होंने कहा कि यह केंद्र सरकार का बिजली (संशोधन) विधेयक, 2021 के जरिये वितरण कंपनियों का लाइसेंस रद्द कर वितरण में निजी क्षेत्र को लाने का प्रयास है।

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