नई दिल्ली। 6 दिसंबर 1992 को रामजन्मभूमि परिसर स्थित विवादित ढांचे के विध्वंस प्रकरण का फैसला आज 30 सितंबर को आएगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सीबीआई कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर 2 सितंबर से अपना निर्णय लिखवाना शुरू कर दिया। अब निर्णय क्या होगा, यह सोचकर हर किसी की धड़कनें तेज हो गई हैं। इस मामले में भाजपा, शिवसेना व विहिप के वरिष्ठ नेताओं के साथ साधु-संत भी आरोपित हैं। घटना के 28 साल बाद आने जा रहे फैसले से पहले ही 18 आरोपियों की मौत हो चुकी है। बाकी जीवन के अंतिम पड़ाव में राम मंदिर निर्माण शुरु होने से बेहद प्रसन्न थे पर अगले 48 घंटे उन पर बहुत भारी हैं। इस बीच रामनगरी की हर गली व मोहल्ले में एक ही चर्चा है कि 30 सितंबर को क्या होगा। सभी की नजरें सीबीआई कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं। सभी साधु-संत मानते हैं कि जाने-अनजाने जैसे भी विवादित ढांचे के विध्वंस ने ही राम मंदिर विवाद के पटाक्षेप में बड़ी भूमिका निभाई है, और यही टर्निंग प्वाइंट था जब विवाद का पलड़ा राम मंदिर के पक्ष में झुक गया। हरिगोपाल धाम के महंत जगदगुरु रामदिनेशाचार्य कहते हैं कि यदि इमारत खड़ी होती तो ऐतिहासिक इमारत को तोड़कर नवीन मंदिर की परिकल्पना शायद ही मूर्त रुप ले पाती। सदगुरु सदन गोलाघाट के महंत सियाकिशोरी शरण महाराज कहते हैं कि पूरी दुनिया का इतिहास संघर्षों से भरा है। एक हजार साल तक हिन्दुस्तान भी अलग-अलग आक्रांताओं से उत्पीड़ित होकर गुलाम बना रहा। ब्रिटिश हुकूमत से मिली स्वतंत्रता के बाद देश के हुक्मरानों ने अपने-अपने नजरिए से गुलामी के प्रतीक चिह्नों को समाप्त किया लेकिन वोटों की सियासत में रामजन्मभूमि, काशी और मथुरा की सुधि नहीं ली गयी। उन्होंने कहा कि काल का पहिया रुकता नहीं और समय स्वयं अपना इतिहास लिखता है। यह इतिहास बन चुका है। इस इतिहास का मूल्यांकन अलग-अलग संस्थाएं अपने-अपने दृष्टिकोण से करती रहेंगी। उधर, ढांचा ध्वंस मामले के आरोपी रामजन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास कोरोना से उबरने के बाद चिकित्सकीय आब्जर्वेशन में हैं। राजकीय श्रीराम चिकित्सालय के चिकित्सक, डीएम व सीएमओ के आदेश पर प्रतिदिन उनका परीक्षण कर रहे हैं। इन चिकित्सकों का कहना है कि संतश्री की हालत में काफी सुधार है लेकिन वह मूवमेंट करने की स्थिति में बिल्कुल नहीं हैं। उनके उत्तराधिकारी महंत कमल नयन दास ने बताया कि सम्बन्धित तथ्यों से कोर्ट को अवगत करा दिया गया है। अब आगे जैसा आदेश होगा तदनुसार निर्णय किया जाएगा। इस बीच ट्रस्ट के महासचिव व मामले के आरोपी चंपत राय व विहिप के अन्य पदाधिकारी लखनऊ पहुंच गए हैं। इसी बीच मस्जिद विध्वंस मामले में अभियुक्त कुछ वरिष्ठ राजनीतिक नेता कोर्ट में पेशी से छूट की मांग कर सकते हैं। कानून कहता है कि फैसले के दिन सभी आरोपियों को अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित होना चाहिए। लेकिन 32 में से कुछ आरोपी जैसे जिनमें भारतीय जनता पार्टी भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे आदि लोग कोरोना महामारी और उम्र का हवाला देते हुए अदालत से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए जुड़ने की मांग सकते हैं। अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को हुई विवादित ढांचे के विध्वंस की घटना पर न्यायालय का फैसला 30 सितंबर को सुनाया जाएगा। यह फैसला कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच सुनाया जाएगा। पुलिस ने लखनऊ में विशेष सीबीआई अदालत के आसपास कड़े सुरक्षा प्रबंधों की कार्ययोजना तैयार की है।

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