कानपुर। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के ये शब्द अपने बीमार मित्र कृष्ण कुमार अग्रवाल से मुलाकात के दौरान बरबस ही निकल पड़े। अपने मित्र से मिलने उनके घर गए कोविंद ने कहा, राष्ट्रपति की हैसियत से नहीं, एक दोस्त की हैसियत से घर आया हूं। कानपुर सर्किट हाउस से राष्ट्रपति का काफिला कृष्ण कुमार अग्रवाल मुन्नाबाबू के घर के लिए निकला। कैंट स्थित उनके आवास में अपने दो मित्रों को देख राष्ट्रपति मुस्करा उठे। मुन्नाबाबू के घर में कोविंद के एक और अभिन्न मित्र मधुसूदन गोयल भी मौजूद थे, जो पुखरायां से आए थे। तीनों ने एक दूसरे का हालचाल लिया। मुन्ना बाबू के बेटे विकास अग्रवाल ने बताया कि आते ही राष्ट्रपति ने पूरे परिवार का हालचाल लिया। पुरानी यादें ताजा कीं लेकिन राजनीति या व्यापार पर एक शब्द चर्चा नहीं हुई। उन्होंने पहले ही कह दिया था, आपके घर दोस्त आ रहा है, राष्ट्रपति नहीं। 15 साल पुरानी दोस्ती की जड़ें इतनी गहरी हैं कि राज्यपाल बनने के बाद बिहार बुलाया। अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया। तब मुन्ना बाबू की पत्नी बीना अग्रवाल शपथ ग्रहण में नहीं जा सकीं थीं। अगले दिन राष्ट्रपति ने खासतौर पर उन्हें आमंत्रित किया। उनके मित्र मधुसूदन गोयल ने बताया कि हम मित्रों के बीच निश्छल स्नेह है। राष्ट्रपति पद के शपथग्रहण के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पंक्ति के पीछे जगह दी थी। परिवार के सदस्यों के रूप में मोदी से मुलाकात कराई थी। देश के प्रथम नागरिक की सौम्यता है कि मुलाकात के आखिरी दौर में अपने दोस्त के पास बैठकर उन्होंने कहा, मुन्ना बाबू मैनें आपसे बहुत कुछ सीखा है और उसे अपने जीवन में लागू भी किया है। ये शब्द सुनकर दोनों दोस्तों ने भावुक होकर हाथ जोड़ लिए और बोले, ये आपकी महानता है कि राष्ट्रपति के पद पर बैठने के बाद मुझे इतना सम्मान दे रहे हैं। मधुसूदन गोयल ने बताया कि जब कोविंद राज्यसभा सांसद भी नहीं थे, तब पु्खरायां में मुन्ना बाबू से परिचय कराया। पहली ही मुलाकात में दोनों एक दूसरे के कायल हो गए। कोविंद ने कानपुर आकर मुन्ना बाबू के प्रतिष्ठान आने की मंशा जताई। फिर जनरलगंज में उनके प्रतिष्ठान्न कई बार गए। अक्सर भोजन साथ-साथ करते थे। बिहार के राज्यपाल बने तो कोविंद ने मुन्ना बाबू को फोन कर इस उपलब्धि की सूचना दी। बोले, दोस्तों के बीच केवल दोस्ती की बात, बस और कुछ नहीं।