उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में झड़पों के लिए बुधवार को पुलिस को फटकार लगाई और राष्ट्रीय राजधानी में हिंसा की घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण बताया लेकिन उनसे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने कहा कि वह हिंसा पर याचिकाओं पर विचार करके शाहीन बाग प्रदर्शनों के संबंध में दायर की गई अपीलों के दायरे में विस्तार नहीं करेगी। पीठ ने हिंसा की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘अगर उकसाने वाले लोगों को पुलिस बच कर निकलने नहीं देती तो यह सब नहीं होता।’’न्यायालय ने कहा कि अगर कोई भड़काने वाले बयान देता है तो पुलिस को आदेशों का इंतजार नहीं करना होता बल्कि कानून के अनुसार कार्रवाई करनी होती है। न्यायमूर्ति जोसेफ ने यह भी कहा कि पुलिस ने पेशेवर रवैया नहीं अपनाया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंसा के संबंध में याचिकाओं पर सुनवाई की है।

इसके बाद न्यायालय ने दिल्ली हिंसा से संबंधित याचिकाओं का निस्तारण करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय इस मामले पर विचार करेगा। उत्तरपूर्वी दिल्ली में साम्प्रदायिक हिंसा में मरने वाले लोगों की संख्या बढ़कर बुधवार को 20 हो गई। सॉलिसिटर जनरल ने न्यायालय से दिल्ली हिंसा से संबंधित प्रतिकूल टिप्पणियां न करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि इससे पुलिस बल हतोत्साहित होगा।
न्यायालय ने उन्हें बताया कि उसके विचारों को गलत न समझें क्योंकि ये टिप्पणियां दीर्घकालिक निहितार्थों को ध्यान में रखकर की गई हैं। पीठ ने कहा कि उसके मन में दिल्ली पुलिस के खिलाफ कुछ नहीं है लेकिन वृहद परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर टिप्पणियां की गई हैं। न्यायमूर्ति जोसेफ ने अमेरिका तथा ब्रिटेन की पुलिस का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर कुछ गलत होता है तो पुलिस को कानून के अनुसार पेशेवर तरीके से काम करना होता है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि प्रतिकूल संदर्भ में टिप्पणियां नहीं की गईं बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए की गईं कि कानून व्यवस्था बनी रहे। पीठ ने मामले पर अगली सुनवाई के लिए 23 मार्च की तारीख तय करते हुए कहा कि शाहीन बाग मुद्दे पर सुनवाई से पहले उदारता और स्थिति के शांत होने की जरूरत है।

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