नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर तेजी से लोगों को अपना शिकार बना रही है। इस साल फरवरी की शुरुआत में लोगों ने इस महामारी को हल्के में लेना शुरू कर दिया था क्योंकि रोजाना नए मामलों की संख्या काफी घट गई थी। सभी राहत की सांस ले रहे थे। एक्टिव मामलों की संख्या बहुत कम रह गई थी। फिर, अचानक कोरोना की दूसरी लहर ने पांव पसारना शुरू कर दिया। वर्तमान हालात को देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि एक देश के तौर पर हम पिछले एक साल के अनुभव से शायद बहुत अधिक नहीं सीख पाए। यदि सीखा होता तो आज इस तरह की विषम परिस्थिति पैदा नहीं हुई होती। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना के नए वैरिएंट, महामारी से बचाव के उपायों के प्रति लापरवाही, चुनाव, धार्मिक आयोजन व समारोह दूसरी लहर के मुख्य कारण हैं।
दूसरी लहर पहली के मुकाबले ज्यादा ताकतवर
भारत में एक दिन में कोरोना वायरस संक्रमण के 3 लाख 49 हजार 691 नए मामले सामने आने के साथ ही कोविड-19 के कुल मामले बढ़कर 1 करोड़ 69 लाख 60 हजार 172 पर पहुंच गए। जानकारों का कहना है कि दूसरी लहर पहली के मुकाबले ज्यादा ताकतवर है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए कई चीजें जिम्मेदार हैं। इनमें कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन नहीं करना, टीका लगवाने में लोगों की कम दिलचस्पी और टीकाकरण की सुस्त रफ्तार जैसी बातें शामिल हैं।
अर्थव्यवस्था को चोट
देश में पहली लहर के कमजोर पड़ जाने के बाद लोगों ने बचाव के उपायों का पालन करना बंद कर दिया। यह भी दूसरी लहर के आने का सबसे बड़ा कारण है। सरकार ने हर चीज को खोलना शुरू कर दिया। इससे चीजें कोरोना से पहले की तरह हो गईं। लोगों ने सावधानी बरतनी बंद कर दी। इससे आबादी का बड़ा हिस्सा इस बीमारी की चपेट में आने लगा। राज्यों ने भी लोगों पर अंकुश लगाने में देरी की जिससे संक्रमण के मामले बढ़ते गए स्वास्थ्य प्रणाली ध्वस्त होती चली गई। ऐसे में एक बार फिर से कई जगहों पर सरकार को लॉकडाउन लागू करना पड़ा, जिससे अर्थव्यवस्था को और भी अधिक नुकसान हो रहा है।
हर स्तर पर हुई लापरवाही
बचाव के उपायों के प्रति लापरवाही केंद्र सरकार के स्तर पर शुरू हुई। फिर सभी राजनीतिक समूहों और आम लोगों ने लापरवाही शुरू कर दी। पूरे स्टाफ को वैक्सीन लगाए बगैर स्कूल और कॉलेज खुलने लगे। जहां-जहां संक्रमण के मामले बढऩे लगे थे, वहां-वहां पाबंदियों को सख्ती से लागू करना चाहिए था, लेकिन चुनाव की वजह से कोई राजनीतिक दल ऐसा नहीं चाहता था। कोरोना की महामारी के दौरान चुनाव कराने की योजना भी सोच-समझकर बनानी चाहिए थी। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। इधर, उत्तराखंड में कुंभ का आयोजन किया गया जिससे देखभर में मानों कोरोना का विस्फोट हो गया।

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