मदरलैंड संवाददाता ,बगहा

देश में “लॉक डाउन” का देश में 33 वाँ दिन है, विगत 33 दिनों में देश के लोगो की दिनचर्या ही बदल गई है। पिछले 25 मार्च 2020 से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व में तेजी से फैल रहे कोविड-19 कोरोना वायरस जैसी संक्रामक वैश्विक महामारी को देख राष्ट्र को “लॉक डाउन” घोषित कर दिया। जिससे लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी बदल गयी। सारे कार्यक्रम ज्यों के त्यों पड़े रह गए, आम व खास लोगों की दिनचर्या ही बदल गयी।

निखर गया प्राकृतिक सौन्दर्य

भारत सरकार के “लॉक डाउन” का निर्णय कोविड- 19 “कोरोना वायरस” महामारी” जैसी संक्रामक बीमारी से वैश्विक जंग के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। आमजन बाग-बगीचे में अनावश्यक रूप से जाना बन्द कर चुके है। जिससे जंगल का शांत वातावरण मानो  प्राकृतिक की सुरक्षा लौट गया हो। आवगम के अवरुद्ध होने से वनों को आच्छादन बढ़ा है और अपनी उनका प्राकृतिक सौन्दर्य निखर गया है। संवाद संकलन के दौरान वाल्मीकिनगर जाने के दौरान जंगलों में जानवर मस्ती करते नजर आ रहे हैं, जबकि नयनाभिराम दृश्य मनमोहक हो गया है। वसंत की विदाई में कोयल की कूक से मन गदगद हो रहा है, चिड़ियों के कलरव, अन्य वन्य जीवों की स्वच्छन्दता से मंत्रमुग्ध लौटने की इच्छा नहीं रह जाती अलबत्ता समाचार भेजने की बाध्यता, परिवार की फिक्र सहसा कदम तीव्र गति से आगे बढ़ जाते हैं और पीछे छूट जाता है प्रकृति से वास्ता, रोजमर्रा की जिन्दगी में हम जुट जाते हैं। वन्य क्षेत्र में कोई प्रदूषण नहीं, जल स्वच्छ, वायु शुद्ध और ध्वनि के नाम पर प्राकृतिक आवाज़ लौटने की इच्छा नहीं रह जाती। आगे बढ़ते ही बस्तियों में ध्वनि प्रदूषण के कारण पक्षियों व वन्य जीवों की आवाज़ मद्धम होती चली गयी। “लॉक डाउन” ने मानव को यह बता दिया आज़ाद वे हैं हम तो स्वार्थ के गुलाम है। आमजन के साथ शहरी पशु-पक्षियों पर “लॉक डाउन” का व्यापक असर पड़ा है। मशीनरी कल कारखाने, वाहन बंद हो जाने से  वीरानी बढ़ गयी है। पूरे देश में कल करखाना, हवाई सेवा, रेल सेवा, बस सेवा और निजी गाड़ियों के परिचालन बंद होने से लोगों की जिंदगी में एक बदलाव नजर आ रहा है। जो कभी गाडियों से उतरने का नाम नही लेते वे कुछ कदम पैदल चलकर सब्जी को खरीदने निकल रहे हैं। बाहर से गाड़ियों का आगमन कम होने से खाने-पीने की कुछ वस्तुओं की कमी अवश्य हो गयी है। अलबत्ता ‘लॉक डाउन’  का शांत वातावरण जीवन के लिए विशेष लाभकारी है। ‘लॉक डाउन’   की वजह से ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण व जल प्रदूष्ण से लोगों को कुछ राहत मिल रहा है और कोविड 19 कोरोना वायरस के चैन को तोड़ने में काफी मदद मिलने की सम्भावना है। “लॉक डाउन” का साफ तौर पर बेहतर नतीजा देखने को मिल रहा है। बंद के दौरान सड़के सूनी, स्टेशन वीरान हो गए है, गाँव के टोला से शहर में मोहल्ले तक मानो वीरानी सी है छाई हुई है। इतनी सख्ती के बावजूद करना संक्रमण का कम नहीं होना, कहीं न कहीं व्यवस्था की कमी की तरफ़ ईशारा करता है। कोरोना से 80 प्रतिशत लोग घरों में दुबके हुए हैं, लेकिन 20 प्रतिशत उच्चश्रृंखल युवको व अन्य लोगो के कारण हालत प्रतिदिन बढ़ने की संभावनाएं हैं। अब देखना है कि बीमारी से निपटने के लिए सरकार किस हद तक कौन सी कदम उठाती है। कोविड-19 कोरोना वायरस  से निकलने के लिए संसाधन के आभाव से जूझ रही सरकार अब कौन कदम उठाएगी, इसपर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई है। आश्चर्य तो यह की अप्रैल महिना बीतने को है और लोग रात में कम्बल ओढने को बाध्य हैं। वरीय नागरिक यह बताते हुए दांतों तले अंगुली दबा रहे है कि विगत 50 वर्षों में ऐसी स्थिति नहीं देखने को मिली की आधा बैशाख महिना बीते और लोग कम्बल ओढें घोर आश्चर्य है। इस महीने में बेमौसम बरसात व ओलावृष्टि से किसानों की रबी फसलों की बर्बादी होती देखी जा रही है।

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