पार्थसारथि थपलियाल
(वरिष्ठ मीडियाकर्मी)
“हमें लोकल के लिए वोकल होना पड़ेगा”, “स्वदेशी अपनाना होगा” एक बार तो यह लगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अलंकारिक भाषा का चमत्कार दिखा रहे हैं, लेकिन भारत की जनता जिस मुख्य विषय पर उन्हें सुनने के लिए कान खड़े किए हुए थी, वह उनके राष्ट्रीय प्रसारण का मुख्य बिंदु नही था बल्कि लॉक डाउन की जानकारी लेना था।
लोग जानना चाहते थे कि वर्तमान ठप्प पड़े जनजीवन की गतिविधियों को संचालित करने के लिए प्रधानमंत्री क्या कोई घोषणा करेंगे? लेकिन ऐसा नही हुआ। जो हुआ वह इतना अधिक हुआ कि जिसकी कल्पना किसी ने नही की थी। 12 मई 2020 को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया। उनकी पहली बात घर के बड़े बुजुर्ग जैसे थी जो समझाने का प्रयास करता है कि कोरोना वायरस के कारण देश की अर्थव्यवस्था में क्या हो रहा है और उसका दुष्प्रभाव हमारे सामने किस तरह दिखाई दे रहा है। प्रवासी मजदूरों की स्थिति से हम सभी परिचित हैं। छोटे मोटे काम धंधा करनेवाले लोगों को कैसे सक्षम बनाया जाय? उत्पादकता बढ़ाये बिना अर्थव्यवस्था को पटरी पर नही लाया जा सकता ।
बंद पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फूकने के इरादे से प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपये की एक राहत पैकेज की घोषणा की। यह राशि हमारी जी डी पी का 10 प्रतिशत है। इसका व्योरा वित्तमंत्री सीता रमन अलग से देंगी। यह राशि भारतीय अर्थव्यवस्था में अबतक दी गई राहत में सर्वाधिक है। देश और नागरिकों के लिए यह राहत पैकेज बहुत बड़ा मायना रखती है। लॉकडाउन के कारण उद्योग धंधे बंद हैं। श्री क्षेत्रों से कामगार अपने घरों को लौट गए, जहां गए हैं वहां बेरोज़गारी इतनी बढ़ रही है कि आनेवाले समय मे नए प्रकार के सामाजिक और आर्थिक संकट पैदा होंगे। यह राहत पैकेज क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को नया बल देगा। यद्यपि जानकर लोग इस बात से भी चिंतित हैं कि कितनी भी कोशिश की जाय अर्थव्यवस्था के माफिया इस स्थिति में अपना कुचक्र अवश्य चलाएंगे। सभी क्षेत्रों से प्रधानमंत्री की इस घोषणा का तहदिल से स्वागत किया गया। शायद “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” का मंत्र जन जन तक पहुंच गया। आनेवाले दिनों में पता चलेगा कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में यह घोषणा कितनी सफल हो पायी।
सबसे अधिक चोंकाने वाली बात तो यह थी- हमें “लोकल के लिए वोकल” बनना पड़ेगा। लोकल यानी स्वदेशी और वोकल यानी मुखर। हमे स्वदेशी के लिए मुखर होना पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने यह बात ऐसे समय मे व्यक्त की है जब दुनिया भयंकर मंदी के दौर से गुजर रही है, कोविड-19 बीमारी के कुप्रभावों से अनेक देशों की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई है। स्वयं कोरोना वायरस का जनक चीन की अर्थव्यवस्था में 8.2 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है, जो पिछले 30 वर्षों में सर्वाधिक है। नंबर एक कहा जानेवाला संयुक्त राज्य अमेरिका यह नही सोच पा रहा है कि वह अर्थव्यवस्था को गिरने से बचाये या नागरिकों को मारने से। अब तक दुनिया मे लगभग 36 लाख लोग कोरोना वायरस प्संक्रमित हैं और लगभग 2 लाख 50 हज़ार लोग कोविड-19 बीमारी के कारण बचाये नही जा सके। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन पर यह आरोप भी लगाया कि चीन कोरोना को जैविक हथियार के रूप में तैयार कर रहा था। कुछ तो चीन में गड़बड़ था, कि अनेक विकसित देशों का चीन से मोहभंग हो गया है। अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इटली आदि देश चीन को लताड़ रहे हैं कि उसने कोरोना वायरस के बारे में जानकारी लंबे समय तक छुपाकर रखी।
चीन की जनसख्या लगभग 140 करोड़ है और भारत की जनसंख्या लगभग 135 करोड़ है। भारी प्रभावी जनसंख्या के कारण भारत विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। नई आर्थिक नीतियों के दौर में चीन ने सस्ता माल बनाया और उसे भारत के बाजार में बेचा। भारत चीन के उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक है। विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर दी गई सूचना के अनुसार भारत ने चीन को 18.54 अरब डॉलर के उत्पादों का निर्यात किया जबकि चीन ने भारत को 81.46 अरब डॉलर का निर्यात किया। इस भयंकर व्यापार असंतुलन पर प्रधानमंत्री ने कई बार चिंता व्यक्त की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद पड़ोसियों से संबंध बेहत्तर करने के इरादे से चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग को अहमदाबाद में झूला भी झुलवाया था और उनकी दूसरी भारत यात्रा के दौरान दक्षिण भारत के दर्शन भी करवाये थे। भारत यह अच्छी तरह से जानता है चीन का कोई सगा नही। 1954 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ हिंदी-चीनी भाई भाई के नारे लगाने वाले चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने पंचशील के सिद्धांत पर हस्ताक्षर करने के बाबजूद अपना असली रूप 1962 में दिख दिया था, जब 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। एक महीने तक चले युद्ध के बाद भारत को 38 हज़ार वर्ग किलोमीटर चीन ने दबा दिया इसी तरह 1963 में चीन ने पाकिस्तान के साथ समझौता कर पाक अधिकृत कश्मीर से 5180 वर्ग किलोमीटर जमीन पाकिस्तान ने चीन को दे दी। इस प्रकार चीन ने भारत की 43,180 वर्ग किलोमीटर भूमि पर अवैध कब्जा जमाया हुआ है।
वर्तमान में अगस्त 2019 में भारत ने कश्मीर समस्या को जिस तरह हल किया है उससे भी चीन परेशान है। चीन ने सदैव पाकिस्तान का साथ दिया है, जब जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत-पाक मामले गए, चीन ने पाकिस्तान के हितों की रक्षा करते हुए भारत के विरुद्ध वीटो पावर का इस्तेमाल किया है। भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर को खाली करवाने का अपना रुख संसद में व्यक्त किया है, उससे पाकिस्तान से ज्यादा चीन दुखी है। पाकिस्तान और चीन के मध्य जो “सी पैक” समझौता है उसके अनुसार पाक अधिकृत कश्मीर से होकर अपनी सड़क बना ली है। इस सड़क के मार्फत चीन यूरोपीय देशों तक भू मार्ग बनाना चाहता है। चीन, बांग्ला देश और नेपाल में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। दक्षिण में वह अपना नौसैनिक अड्डा मजबूत कर रहा है। श्रीलंका में वह अपना आधार मजबूत कर रहा है। हाल के वर्षों में भारत की स्वीकार्यता दुनिया मे जिस तरह बढ़ी है, लोग भारत की बात गौर से सुनने लगे है उससे कहीं की नींद उड़ी हुई है। भारत की पूर्ववर्ती कमज़ोर सरकारों ने न तो राजनीतिक न राजनैयिक और न आर्थिक मोर्चे पर चीन से बराबरी में बात की। ऐसे में कोरोना काल दुर्भाग्य में सौभाग्य लाया है कि प्रधानमंत्री ने वैदेशिक संधि शर्तों का उल्लंघन किये बिना, 20 लाख करोड़ रुपये की राहत पैकेज की घोषणा करते हुए लपेट कर यह कह दिया कि स्वदेशी उत्पाद अपनाओ विदेशी को भूलो। इसका असर ये भी होगा कि चीन में कार्यरत अनेक कंपनियां भारत की ओर रुख करेंगी। चीन का माल अगर भारत मे नही बिक पायेगा तो उसका लगभग एक सौ अरब डॉलर का निर्यात डगमगा जाएगा। चीन में बेरोजगारी बढ़ेगी। चीन का ड्रैगन स्वरूप पूंछ हिलाना शुरू करेगा। प्रधानमंत्री ने एक अत्यंत सुलझे नेता के रूप में अपनी बात कही, जिसका भारतीय उद्यमी अर्थ समझने लगे। भले ही कुछ चीन-पाक परस्त लोग इस बात को फरेब बताने की कोशिश करेंगे क्योंकि उनके बहुत से हित उनके आका चीन से पूरा करते हैं।
कोरोना का एक असर यह भी हुआ जिस वुहान शहर से यह विषाणु फैला था उसी वुहान शहर में अनेक कंपनियां बंद पड़ी हैं। जापान ने अपने नागरिकों की कंपनियों को अपने ही देश मे सबल बनाने का काम शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश के उद्योग मंत्री सिद्धार्थ सिंह ने अनेक अमेरिकी कंपनियों के मुख्यकार्यकारी अधिकारियों से बात शुरू भी कर दी है। “लोकल के लिए वोकल” बनने का मतलब यही है स्वदेशी की ही मांग करें, स्वदेशी का ही प्रचार करें। जब विदेशी की मांग नही होगी तो चीन की अर्थव्यवस्था चरमराएगी और भारत जैविक हथियार की बजाय “लोकल के लिए वोकल” मंत्र को अपनाकर अपने देश को मजबूत करेगा।