केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने उच्च सदन में सरोगेसी (रेगुलेशन) बिल प्रस्तुत किया। यह बिल निचले सदन के मानसून सत्र में ही पारित हो गया था, लेकिन इसे अमल में लाने के लिए राज्यसभा से पारित कराना आवशयक है। सदन में इस बिल के पेश होते ही हंगामा शुरू हो गया। डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि इस बिल का पास होने क्यों आवश्यक है। किन्तु राज्यसभा में पारित होने को लेकर इस पर बहस शुरू हुई और कुछ परिवर्तन भी सुझाए गए।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बिल का मूल उद्देश्य, व्यावसायिक सरोगेसी यानी पैसों के लिए कोख को किराए पर देने पर रोक लगाना है। बिल पर बहस बिना किसी फैसले के समाप्त हुई। दरअसल, सरोगेसी एक व्यवस्था है, जिसके अनुसार, कोई दंपती बच्चे के जन्म के लिए गर्भधारण के लिए किसी अन्य महिला पर आश्रित होते हैं। बच्चे को जन्म देने के लिए दंपती किसी महिला की कोख किराए पर लेता है। इसके कई कारण हो सकते हैं. जैसे कि यदि कपल बच्चे पैदा करने में समर्थ नहीं है, या फिर बच्चे पैदा करने में महिला को जान का खतरा हो।
बता दें कि जो औरत अपनी कोख में दूसरों का बच्चा पालती है, वो सरोगेट मदर कही जाती है। विदेशों में ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं, किन्तु भारत में अचानक इस तरह के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इस तरह यह यहां भावनात्मक तौर की जगह व्यवसाय की तरह विकसित हो रहा है।