जबलपुर। प्रदेश भर में जूनियर डॉक्टर अपनी 6 सूत्रीय मांग को लेकर 31 मई से हड़ताल पर हैं। गुरुवार को मप्र उच्च न्यायालय ने हड़ताल को असंवैधानिक घोषित कर दिया। डॉक्टरों को 24 घंटे में काम पर लौटने की बात भी कही। 24 घंटे की मोहलत से पहले ही एस्मा को लेकर मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (एमयू) जबलपुर के कुलपति डॉ. टी. एन. दुबे ने विभिन्न कालेजों के डीन की अनुशंसा पर 467 छात्रों का नामांकन निरस्त करने का निर्णय ले लिया। इस निर्णय से चिकित्सा छात्रों में जहाँ खासा आक्रोश है वहीं एमयू प्रबंधन से आदेश जारी करने वाले हस्ताक्षरकर्ता अधिकारी कुलसचिव डॉ. जे. के. गुप्ता के साथ कुलपति डॉ. दुबे भी इस बात का जवाब नहीं दे पा रहे हैं कि विवि अधिनियम की किस धारा के तहत उन्होंने ४६७ छात्रों का नामांकन निरस्त किया। विधिक जानकारों का कहना है कि विवि अधिनियम में इस तरह का कोई अधिकार ही विवि के पास नहीं है कि वह छात्रों का नामांकन निरस्त कर सके।
ज्ञात हो कि न्यायालय का आदेश आते ही विश्वविद्यालय द्वारा २४ घंटे की दी गई निर्धारित अवधि से पूर्व ही 467 पर जूडा के फाइनल और सेकेंड ईयर वाले छात्रों का नामांकन निरस्त कर दिया। जिसमें एमयू ने हवाला दिया कि कोविड में एस्मा लागू होने के बावजूद वे हड़ताल पर गए। इस आदेश के विरोध में प्रदेश भर के लगभग 3500 जूनियर डॉक्टरों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया। इसमें जबलपुर के 37, जीएमसी भोपाल के 95, एमजीएम इंदौर के 91, गजराराजा कॉलेज ग्वालियर के 71, और श्यामशाह कॉलेज रीवा के 173 पीजी छात्र शामिल हैं।
कार्य परिषद से भी नहीं किया परामर्श
एमयू सूत्रों के मुताबिक विश्वविद्यालय में कोई छोटे से छोटा कार्य भी करना होता है तो कार्यपरिषद (ईसी) की बैठक कर सदस्यों से परामर्श लिया जाता है। यह पहला अवसर था जब बगैर किसी सदस्य से परामर्श लिए छात्रों के नामांकन निरस्त कर दिए गए। आलम ये रहा कि आदेश जारी करने से पूर्व एमयू प्रबंधन ने किसी ईसी सदस्य से फोन पर चर्चा करना भी उचित नहीं समझा। ईसी सदस्यों ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि नामांकन निरस्त करना विवि के अधिकार क्षेत्र से बाहर का विषय है।
रामदेव के बाद आयुष चिकित्सक कुलसचिव
एमयू सूत्रों के अनुसार तमाम विश्वविद्यालयों में जब कुलपति स्तर के अधिकारी ऑनलाईन शैक्षणिक कार्य के पर्यवेक्षण में जुटे थे तब एमयू के कुलपति न सिर्फ विगत दो माह से एमयू नहीं आए थे शुक्रवार को अचानक सिर्फ यह आदेश जारी करने यहाँ पहुंचे। ईसी सदस्यों ने बताया कि प्रबंधन ने विश्वविद्यालय अधिनियम के विपरीत जाकर छात्रों के नामांकन निरस्त करने का जो विधि विरुद्ध आदेश जारी किया वह अपने आप में यह साक्ष्य दे रहा है कि प्रबंधन कितना अकुशल, अदूरदर्शी और तर्कहीन है। आईएमए के सदस्यों ने कहा कि एक तरफ आर्युवेद औषधियों की दुकान चलाने वाले रामदेव ने एलौपैथी के साथ चिकित्सकों पर अनुचित टिप्पणी कर विवादों में घिरे हुए हैं दूसरी तरफ एमयू के आयुष चिकित्सक कुलसचिव डॉ. जे के गुप्ता इस तरह का विवादित आदेश जारी कर विवादों में घिर गए हैं। ऐसे संकेत मिल हैं कि जूडा के साथ आईएमए जबलपुर भी कुलपति और कुलसचिव के खिलाफ इस तरह के आदेश के विरुद्ध प्रदर्शन करने की तैयारी में है। आईएमए के कुछ चिकित्सकों ने ईएमएस से कहा है है कि यदि प्रबंधन को विधि का ज्ञान होता तो इस तरह का विधि विरुद्ध निर्णय कभी नहीं लिया जाता।
जेएआर व एसआर भी हड़ताल में शामिल
जूनियर डॉक्टरों की छह सूत्रीय मांग के समर्थन में शुक्रवार से जूनियर रेसीडेंस (जेआर) और सीनियर रेसीडेंटस (एसआर) भी हड़ताल में शामिल हो गए। इनकी संख्या जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 100 है। एमबीबीएस पासआउट के बाद एक वर्ष का इंटर्नशिप करना होता है। इसमें 6 महीने ग्रामीण व छह महीने कहीं भी सेवा देने की स्वतंत्रता होती है। 6 महीने तक उन्हें जेआर और इसके बाद एसआर कहा जाता है। इनके हड़ताल में शामिल होने से मेडिकल कॉलेज में इलाज ठप सा हो गया है।
नर्सों के भरोसे मरीजों का चल रहा इलाज
मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर ही वार्ड में 24 घंटे सेवा देते हैं। उनके हड़ताल पर चले जाने से इलाज की सेवा चरमरा गई है। कोविड, फंगस, इमरजेंसी, आर्थों, नेत्र, सर्जरी आदि से जुड़े मरीज अत्यधिक परेशान हैं। कॉलेज के डीन कुछ भी कहें लेकिन डॉक्टर मरीज के परिजनों को सीधे शब्दों में प्राइवेट में ले जाने की सलाह दे रहे हैं। सबसे अधिक मुसीबत में आर्थिक अभाव वाले परिवार हैं, जो प्राइवेट का महंगा इलाज वहन करने में सक्षम ही नहीं हैं।
– नहीं कर सकते नामांकन निरस्त
विधिक जानकारों के अनुसार विश्वविद्यालय एस्मा के आधार पर छात्रों के खिलाफ कार्रवाई उनके खिलाफ एफआईआर कराने या अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई तो कर सकता है लेकिन नामांकन निरस्त करना प्रबंधन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। नामांकन निरस्त करने की कार्रवाई माईग्रेशन सर्टिफिकेट की मांग पर सिर्फ किसी विद्यार्थी के आवेदन के पश्चात ही की जा सकती है।

– कुलसचिव नहीं बता पाए आदेश का आधार
आप कह रहे है कि विवि के पास छात्रों को नामांकन निरस्त करने का आधार नहीं है ऐसा नहीं है। विभिन्न कॉलेजों के डीन की अनुशंसा के बाद कुलपति डॉ टी. एन दुबे के निर्देश पर यह आदेश जारी किया गया। यह विधि विरुद्ध नहीं है। एमयू ने आदेश में अधिनियम का उल्लेख क्यों नहीं किया किया इस विषय में मैं फिलहाल आपकों कुछ नहीं कह सकता। विवि जब नामांकन जारी कर सकता है तो निरस्त भी कर सकता है। एमयू के पास अधिकार है, लेकिन किस अधिनियम के तहत छात्रों के नामांकन निरस्त किए गए इस विषय में जल्द ही आपकों बता दूंगा।
-डॉ. जे. के. गुप्ता
कुलसचिव, एमयू

-सरकार के कहने पर जारी किया आदेश
यह आदेश हमने सरकार के कहने पर जारी किया है, मेरे अनुसार विश्वविद्यालय नामांकन निरस्त कर सकता है लेकिन किस नियम अध्यादेश के तहत हमने यह आदेश जारी किया है यह मैं तत्काल नहीं बता पाउंगा, मुझे किसी से चर्चा करने का समय दीजिए।

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