मदरलैंड संवाददाता, बेतिया
कोरोना से लड़ने की इस विषम घड़ी में जीवन बचाने के मुहिम को अमेरिकी साम्राज्यवाद मोड़ कर आर्थिक सम्पदा बढ़ाने के अवसर के रुप मे देख रहा है । एक बार फिर साम्राज्यवादी खेमो को गोलबंद कर समाजवादी ब्यवस्था को समाप्त करने की असफल खेल खेल रहा है ।भारत के प्रधानमंत्री मोदी भी उसी रास्ते को अपनाना शुरु कर दिया है ।काम की तलाश में निकले देश के 16 करोड़ मजदूर अपने बच्चे और महिलाओं को साथ लिये भूख से लड़ते हुए सरकार द्वारा घर नहीं पहुंचाने की स्थिति में हजारों मील पैदल चलने को विवश है ।कारपोरेट परस्त मोदी सरकार संवेदनहीन हो चुकी है ।सैकड़ों की संख्या में रोज़ मजदूर भूख से या हादसे में मर रहे हैं । सचमुच बडा ही भयावह स्थिति है ।ऐसी गंभीर परिस्थिति में प्रधानमंत्री ने कोरोना से बचाव के लिये 20 लाख करोड़ रुपये का भारी भरकम पैकेज दिया है । सच मानो तो उस पूरे पैकेज में कोरोना से सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं है । प्रधानमंत्री ने इस हालात को देश की आर्थिक समृद्धि का सुनहरा अवसर मान कर कारपोरेट और ब्यवसाइयों के विकास के लिए काम कर रहे हैं । 20 लाख करोड़ के बजट में 18 करोड रुपये पूंजीपतियों के लिए ही है । कारपोरेट घरानो के 68 हजार करोड़ रुपये सरकार ने माफ कर दिया है । विश्वबैंक से पैसे लेकर अमेरिका के दबाव में यह अमानवीय कार्य हो रहे हैं । हमारे सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों को दे रहे हैं । बी एस एन एल , बिजली, डाक, बीमा, रेल जैसे जनता के पैसों से निर्मित मजबूत आधार स्तंभों को कारपोरेट को दिया जा रहा है । भाजपाई राज्य सरकारों को निर्देश देकर मजदूरों के संबिधान प्रदत अधिकारों को कम किया जा रहा है । यहां तक कि 1886 में अमेरिका के शिकागो के मजदूरों ने 12 घण्टे के बदले 8 घण्टे काम के लिए संघर्ष किये । कुर्बानियों के बाद 8 घण्टे काम का अधिकार हाशिल किया । आज भारत जैसे गरीब देश में 12 घण्टे काम का समय निर्धारित किया जा रहा है । कोरोना जैसे खतरनाक महामारी से देश के लोगों को बचाने के बदले देश के निजीकरण के लिये सटीक अवसर मान रहे हैं ।भूख से मर रहे मजदूर इनके प्राथमिकता में नही है । खेतों से लड़कर अनाज निकाल रहे किसान इनके प्राथमिकता में नहीं है । आज 40 की संख्या में प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे किसान को कृषि कर्ज से अबतक मुक्ति नहीं मिली । स्वामीनाथन कमीशन के अनुसंशाओं को अबतक लागू नहीं किया गया । मोदी 2 सरकार आने के बाद किसान सम्मान योजना में 6 हजार रुपये सालाना दिया जाता है । न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए 74 हजार 3 सौ करोड़ रुपये दो साल पहले जो दिया गया । इन दोनों को भी कोरोना में सहायता के नाम शामिल कर दिया गया है । प्रवासी मजदूरों को दो महीने तक मुफ्त राशन देने के लिये 3 हजार 5 सौ करोड़ रुपये का पैकेज में प्रावधान है और उनको काम देने के लिये 40 हजार करोड़ रुपये देने को भारी उपलब्धि माना जा रहा है । भारत कृषि प्रधान देश है । इस देश का रीढ़ कृषि है । इसे नजर अंदाज करके देश को मोदी जी कहाँ ले जा रहे हैं । अंत में हम कहना चाहते हैं कि मोदी जी इस देश की 80 % आबादी 20 रुपये रोज पर गुजारा कर रहा है । यहां रोटी के सवाल को बिना सुलझाये दूसरी बात सोचना बेमानी है । आपका यह चाल देश को फिर साम्राज्यवाद के गुलाम बनाना चाहता है । जो इस देश की जनता नहीं होने देगी।