एल्गार परिषद् को लेकर शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच दरार पड़ गई है। राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी है जिससे की एनसीपी नाराज है। एनसीपी कोटे से गृह मंत्री बने अनिल देशमुख ने गुरुवार को कहा, ‘मुख्यमंत्री के पास शक्ति है। उन्होंने मेरे प्रस्ताव को खारिज कर दिया और जांच करने के लिए एनआईए को हरी झंडी दे दी। देशमुख ने कहा कि एक बड़ा नीतिगत निर्णय लेने से पहले, राज्य सरकार को केंद्रीय मंत्रालय को बताना चाहिए था कि उसके निर्णय पर पुनर्विचार करने की जरुरत है। उन्होंने कहा, ‘हमें एडवोकेट जनरल से सलाह लेनी चाहिए थी। मेरे प्रस्ताव को मुख्यमंत्री ने खारिज कर दिया है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एल्गार परिषद् 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में शनिवार वाडा में दलित समूहों और अन्य लोगों द्वारा आयोजित एक सभा थी। इसके एक दिन बाद भीमा कोरेगांव युद्ध के वार्षिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए गांववाले पहुंचे थे, जहां हिंसा भड़क गई थी। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी जबकि अन्य घायल हुए थे।

उस घटना के बाद तात्कालिन भाजपा-शिवसेना सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। वहीं नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जिन्होंने एल्गार परिषद् का समर्थन किया था। एनसीपी, कांग्रेस और कुछ दलित समूहो ने हिंसा के लिए हिंदुत्व संगठनों को जिम्मेदार ठहराया था। राज्य में महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार बनने के बाद एनसीपी ने सुझाव दिया था कि भाजपा द्वारा एल्गार परिषद् का मामला झूठा है। 10 जनवरी को शरद पवार ने ठाकरे को पत्र लिखकर कहा था कि पुणे पुलिस ने प्रसिद्ध नागरिकों और निर्दोष लोगों को मामले में गिरफ्तार किया है और मामले की जांच एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के अधीन एसआईटी को देनी चाहिए। केंद्र सरकार ने इस संभावना को खत्म करते हुए एनआईए को जांच सौंप दी।

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