मदरलैंड संवाददाता, अररिया
अररिया – कोरोना महामारी के चलते देश में लागू लॉकडाउन की आड़ में सरकारें मज़दूरों के हकों पर लगातार हमले कर रही हैं. कई राज्य सरकारों जैसे कि गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरयाणा, ओडिशा, महाराष्ट्र ने फैक्ट्री एक्ट में बदलाव कर काम के घंटे बढ़ा कर 8 से 12 कर दिए हैं. उत्तर प्रदेश तो एक झटके में 38 श्रम कानूनों को 3 महीने के लिए ख़त्म करने की घोषणा कर चुका है. हटाये जा रहे कानूनों में न्यूनतम मज़दूरी, हड़ताल करने का अधिकार शामिल हैं. मालिक अब आसानी से मज़दूरों को काम पर से हटा सकते हैं.
आज 22 मई को देश भर के मज़दूर संगठनों ने इन बदलावों का विरोध किया. अररिया में भी जन जागरण शक्ति संगठन, संयुक्त वाम मोर्चा, एन पी आर- एन आर सी- सी ए ए विरोधी संघर्ष मोर्चा और शहर के प्रबुद्ध नागरिकों ने सड़क पर उतर कर अपना प्रतिरोध दर्ज किया.
सी.पी.आई के जिला सचिव डॉक्टर एस आर झा ने कहा कि 200 साल पहले जो लड़ाई मज़दूरों ने अपना खून बहा कर जीती थी उसे सरकारें बिना किसी की सलाह लिए, अपने मनमर्जी से ख़त्म नहीं कर रही हैं. सी.पी.एम के राम विनय ने कहा कि लॉकडाउन के बहुत पहले से ही अर्थव्यवस्था खराब हालत में थी, और लॉकडाउन के दौरान व्यवस्था और गड़बड़ा गयी. लेकिन अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए जो रास्ता सरकारों ने चुने हैं, वह मजदूर विरोधी हैं. सी.पी.आई के गेनालाल महतो ने मज़दूर क्रांति का इतिहास बताते हुए महिलाओं कि भागीदारी पर जोर दिया. जन आन्दोलनों का राष्ट्रिय समन्वय (एन.ए.पी.एम) के राष्ट्रिय समन्वयक आशीष रंजन ने कहा कि एक तरफ़ तो अचानक हुए लॉकडाउन की वजह से अलग-अलग राज्यों में फसे प्रवासी मज़दूरों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उनका काम और मज़दूरी चली गयी है, उन्हें रहने- खाने में बहुत दिक्कतें हो रही हैं. उन्होंने कहा कि बहुत से मज़दूर तो पैदल ही अपने घरों को लौट गए, कुछ ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया तो कुछ श्रमिक ट्रेनों में अपने नंबर आने का इंतज़ार कर रहे हैं. सरकार राहत पहुँचाना तो दूर मजदूरों के बचे-कुचे अधिकारों को भी ख़त्म कर रही है. अपने भाषण में जन जागरण शक्ति संगठन (जे.जे.एस.एस.) के महासचिव रंजीत पासवान ने बताया कि गाँव में राशन और काम नहीं मिलने कि वजह से मज़दूर संकट गहराता जा रहा है और सरकार झूठे आश्वासन दे रही है. सी.पी.आई (एम.एल) के इन्द्रानंद पासवान ने बताया कि किस प्रकार सरकार पूंजीपतियों और उच्च वर्ग के हितों के लिए ही काम करती है और कैसे मज़दूरों को इस आपदा में सड़कों पर छोड़ दिया गया. जे.जे.एस.एस. की कामायनी स्वामी ने समाज में फैली असमानता पर जोर देते हुए कहा कि कैसे आपसी भेद पूंजीपतियों के ख़िलाफ़ हमारी इस लड़ाई को कमज़ोर करते हैं. उन्होंने सभा को फैज़ की लिखी बात याद दिलाई, ‘दिल नाउम्मीद नहीं, नाकाम ही तो है, लम्बी है गम की शाम मगर शाम ही तो है.’ जे.जे.एस.एस. के युवा कार्यकर्त्ता विजय कुमार ने सभा में जोश भरते हुए कहा कि ये सरकारें कितना भी ज़ोर लगा लें लेकिन मेहनतकश जनता अपने अधिकारों के लिए लड़ेगी और पीछे नहीं हटेगी. हमारी मांगे हैं कि प्रवासी मजदूरों को सम्मान सहित वापिस लाया जाए, लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को पूरी मजदूरी दी जाए और काम से निलंबित ना किया जाए, बिना कार्ड वाले परिवार को भी राशन दिया जाए, मनरेगा के तहत 200 दिन का काम मिले, और 12 घंटे का कार्यदिवस पर रोक लगे।