राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने संघ के विचारधारा पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि संघ को एक खास विचारधारा और किताब की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है। भागवत ने कहा कि संघ की विचारधारा या परिवार जैसी बातें अक्सर कही जाती हैं, यह सही नहीं है। संघ को प्रगतिशील और व्यावहारिक बताते हुए उन्होंने कहा कि विचार स्थाई नहीं है। यह देशकाल, समय और परिस्थितियों की मर्यादा के संदर्भ में बदलते रहते हैं, पर मूल में दो बातें स्थाई हैं-हिंदू और हिंदुस्तान।
दो साल संघ में बिताएं, सभी गलतफहमियां दूर हो जाएंगी..
जब तक भारत को अपनी मातृभूमि मानने वाला और अपने आपको हिंदू कहने वाला इस भूमि पर एक भी व्यक्ति जीवित है, तब तक यह हिंदू राष्ट्र है। हमारे राष्ट्र में भाषा, पंथ, राज्य के आधार पर विविधता में एकता है। यहां रहने वाले सभी अपने हैं। साथ ही उन्होंने एक बार फिर लोगों से कोई धारणा बनाने के पहले संघ में आने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि कम से कम दो साल संघ में बिताएं, सभी गलतफहमियां दूर हो जाएंगी।
संघ का दृष्टिकोण व्यावहारिक
वह जनपथ रोड स्थित अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील आंबेकर की पुस्तक ‘द आरएसएस रोडमैप्स फॉर द 21वीं सेंचुरी’ के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। सरसंघचालक ने कहा कि संघ का दृष्टिकोण नितांत ही व्यावहारिक है। इसमें सतत विचार मंथन चलता रहता है। यहां देशकाल, समय और परिस्थिति की कसौटी पर सामूहिक सहमति से फैसले लिए जाते हैं। विचारों में मतभेद हो सकता है, लेकिन मनभेद नहीं होता। लोग अपने विचार रखने और लिखने के लिए स्वतंत्र हैं। कोई भी स्वयंसेवक अपना मत रख सकता है। बता दें कि आरएसएस अपने विचारधारा को लेकर हमेशा से विपक्ष के निशाने पर रहा है।