मदरलैण्ड/पटना
फतुहा, आचार्य गद्दी कबीर पीठ दरियापुर फतुहां में आयोजित
कबीर कथा के तीसरे दिन व्यासपीठ पर कथा वाचक योग विशेषज्ञ हृदय नारायण झा का स्वागत माल्यार्पण मठ के संरक्षक महन्थ ब्रजेश मुनि, न्यास समिति के सदस्य संत विवेक मुनि, श्रीमती शारदा देवी, प्रो. संत हरिशदास सहारनपुर के महन्थ सतस्वरूप दास, कबीर चौरा के संत अशोक दास हंस ने किया।
महन्थ ब्रजेश मुनि ने कहा वर्तमान समय मे जाति धर्म और ऊँच नीच का भेद भाव मिटाकर एक सौहार्दपूर्ण समाज का निर्माण करने के लिए कबीर कथा अत्यंत प्रासंगिक है। इसीलिए कबीर कथा का आयोजन किया गया है।
कबीर कथा का प्रसंग वर्णन करते हुए हृदय नारायण झा ने कहा कलियुग में पूर्ण ब्रह्म के अवतार रूप में ऐसे समय में प्रगट हुए सद्गुरु कबीर साहेब जब भारतवर्ष में धर्म की हानि हो रही थी। आडम्बर, अंधविश्वास, जाति, धर्म का भेद भाव, सामाजिक कुरीतियों से मानवता पर संकट था।
ऐसे समय में मानव मानव में भेद को मिटाकर सम्पूर्ण मनुष्य को एक जाति का बताकर सहज, सरस और समरस स्वस्थ समाज निर्माण के लिए आज्ञान अन्धकार में भ्रमित मानव समाज के बीच अपनी प्रगट वाणी से सद्ज्ञान का प्रकाश फैलाया।
सद्गुरु कबीर साहेब अपनी साधना, सिद्धि और व्यवहार से विश्व समुदाय को अपना विश्वरूप दिखाया औऱ अपनी अविश्वसनीय चमत्कार से पूर्णब्रह्म होने का प्रमाण दिया। आत्मा में परमात्मा का निवास बताते हुए कहा –
मोको कहाँ ढूंढें बन्दे, मैं तो तेरे पास में ।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में ॥
ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपास में ।
कथाव्यास ने सद्गुरु कबीर साहेब को सिद्धों और नाथ पंथ के योगसिद्ध महात्मा बताते हुए कहा – सद्गुरु कबीर साहेब ने आत्मा में उस परमात्मा का दर्शन करने की स्थिति बताते हुए जो कहा उसमें सम्पूर्ण योग दर्शन का सार समाहित है। सद्गुरु कबीर का वह दर्शन आज भी प्रासंगिक व्यावहारिक और अनुकरणीय है। सद्गुरु कबीर की वह वाणी है- तन थिर मन थिर वचन थिर सुरत निरत थिर होय। किन्तु इसका लाभ प्राप्त करने के लिए सम्यक अभ्यास आवश्यक है।
कथा के अंत में समवेत रूप से आरती की गयी एवं प्रसाद वितरण हुआ।