मदरलैंड संवाददाता,
पुरबिया खास कर बिहारी को दूसरे प्रदेश वाले कितनी इज्जत देते हैं। यह कोई छिपी हुई सच्चाई नहीं है । इनके साथ महाराष्ट्र में मारपीट की जाती है। भगाया जाता है। दिल्ली में भी सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता। लेकिन इन सब के बावजूद महाराष्ट्र, दिल्ली और पंजाब आदि प्रदेशों के उत्थान के लिए बिहारी मजदूरों ने क्या कुछ नहीं किया? यह भी छुपा हुआ नहीं है। अब एक ताजा उदाहरण सामने है। मंगलवार की रात्रि पंजाब के जालन्धर से चलकर बस का ड्राइवर हरजीत सिंह भैरोगंज थाना के लक्ष्मीपुर डबरा चौक पर पहुँच गया। उसे यहाँ से पैतीस मजदूर धान की रोपाई के लिए ले जाने थे। गौरतलब है के पिछले लॉकडाउन के दरम्यान पैसों और खानेपीने की चीजों की तंगी के कारण ये मजदूर पैदल और साईकिल से गाँव जाने को मजबूर हो गए थे। कहना न होगा कि मजदूरों को पैदल गांव निकलने पर भारी कैजुअल्टी का सामना करना पड़ा था। पेट मे भूख की आग, पाँव में छालों और आँसुओं के दर्द में डूबे, बेहाल कई मजदूरों ने तब कसम खाई थी कि अब चाहे जो हो..पर अब दूसरे प्रदेशों को कमाने नहीं जाएंगे। लेकिन मरता क्या नही करता। संसाधन विहीन बिहार में रोजगार के साधन नहीं है। इसलिये फिर से मजदूरों का पलायन शुरू है। हालांकि धान की रोपनी यहाँ भी शुरू है लेकिन मजदूरों का कहना है कि दोनों प्रदेशों के मजदूरी दर में अंतर है। परन्तु ये मान भी लिया जाय कि पंजाब में खेतिहर मजदूरो को अधिक मजदूरी मिलती है तो भी अपने गाँव घर के निकट मजदूरी करना अलग बात है। घर परिवार के साथ रह कर मजदूरी करने का मजा अलग है जो दूसरे प्रदेशों में नहीं मिल सकता। मजदूर अपने स्वाभिमान की रक्षा के साथ अपने प्रदेश को उन्नत करें, यह सबसे बेहतर है। इधर सरकार को भी ध्यान देने की आवश्यकता है। रोजगार के अवसर खड़ा कर मजदूरों को पलायन करने से रोका जा सकता है।