नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में पिछले पांच माह के अंदर छह हजार से ज्यादा पत्र मिले हैं, जिनमें आम लोगों ने देश की शीर्ष अदालत से अपनी परेशानियों को हल करने के लिए आग्रह किया है। इन चिट्ठियों में उन्होंने आग्रह किया है कि है कि इन्हें पीआईएल में तब्दील कर उनकी सुनवाई की जाए। लेकिन, इनमें से 99.99 फीसदी से ज्यादा पत्र ऐसे हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने पीआईएल के दिशानिर्देशों के अनुसार विचार के योग्य नहीं माना है। इस वर्ष 1 जनवरी से लेकर 26 मई 2021 तक मिले पत्रों की संख्या लगभग छह हजार है। ये संख्या तब है, जब कोविड 19 महामारी की दूसरी लहर के कारण मार्च में लगे लॉकडाउन के बाद से पत्रों को प्रोसेस करने की शाखा काम नहीं कर रही है। इस दौरान जो पत्र आए हैं, वे अभी बक्सों में हैं। इन पत्रों में लोग अपने घर के पास नाली ठीक नहीं होने से लेकर सड़क की मरम्मत, पुलिस द्वारा शिकायत दर्ज नहीं करने, विभाग द्वारा प्रमोशन नहीं देने तथा जजों और न्यायिक अधिकारियों की शिकायत तक के मुद्दे हैं। कुछ में निचली अदालतों में मुकदमे के जल्द निपटारा नहीं होने तथा कुछ में सुप्रीम कोर्ट को सलाहें तक दी गई हैं। शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री के एक अधिकारी ने बताया कि लगभग सभी पत्र पीआईएल के लिए तय दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं होते हैं। शीर्ष अदालत ने पीआईएल दायर करने के लिए कुछ योग्यताएं तय की हैं, लेकिन लोग अपनी व्यक्तिगत समस्याएं, शिकायतें या ऐसी समस्याएं जिनका निपटारा स्थानीय प्रशासन कर सकता है, भेजते हैं। पिछले 10 -12 साल में सुप्रीम कोर्ट ने एक या दो चिट्ठियों पर संज्ञान लिया है। इनमें से एक पत्र तमिलनाडु के शिवाकाशी में बच्चों को पटाखा उद्योग में काम करवाने से सबंधित था। उन्होंने कहा कि मामला जब ऐसे समूह का होता है, जो असुरक्षित है और उसकी आवाज उठाने वाला कोई नहीं होता, तो कोर्ट ऐसे मामलों पर संज्ञान लेता है। संज्ञान लेकर उन्हें पीआईएल बनाकर सुनवाई करता है। अधिकारी ने कहा कि अधिकतर पत्र अनाम होने, उचित फार्मेट/तथ्य न होने, उनमें उचित मुद्दे न होने, व्यक्तिगत होने, उनमें वैकल्पिक राहतें उपलब्ध होने तथा क्षेत्रीय भाषा में लिखे होने के कारण विचार पर नहीं लिए जाते। इन पत्रों को ग्रीवांस सेक्शन में लॉज कर दिया जाता है। पत्रप्रेषक उन पर की गई कार्रवाई को ऑनलाइन देख सकता है।

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