मदरलैंड संवाददाता, भैरोगंज
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री स्वच्छ भारत मिशन के तहत भारत सरकार का देश के गरीब परिवारों के लिए फ्री शौचालय योजना एक महत्वपूर्ण कदम था। जिसके अंतर्गत गरीब परिवार के ऐसे व्यक्ति जिनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है और वे शौचालय निर्माण नहीं करवा पा रहे हैं। फलस्वरूप उन्हें घर से बाहर ही शौच के लिए जाना पड़ता है और इसतरह गंदगी फैलती है। इस गंदगी के कारण फिर कही लोग बीमार भी पड़ते है। इसको ख्याल में रख कर केंद्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले सभी नागरिको के लिए शौचालय बनवाने की सुविधा उपलब्ध कराने का संकल्प लिया है। प्रधानमंत्री स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत ग्रामीण व शहरी इलाकों में स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए शौचालयों का निशुल्क निर्माण किया गया है अथवा किया जा रहा है। इसके लिए सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों के निर्माण के लिए उपभोक्ता को बारह हजार रुपये प्रदान कर रही है। परंतु इसका दूसरा पहलू ये है के शौचालय निर्माण और इसकी दुर्गति ग्रामीण क्षेत्र में ओडीएफ के दावे की पोल खोल रही है। खुले में शौच से मुक्त यानी ओडीएफ घोषित होने के बाद भी खुले में शौच की कुप्रथा पर रोक नही लग सकी है। इसके साथ ही खुले में शौच से मुक्ति के दावे का दम निकल रहा है। इलाके के विभिन्न हिस्सों में खुले में शौच की कुव्यवस्था के प्रति उदासीनता कायम है। इलाके के विभिन्न सड़कों किनारे अथवा खेत-खलिहानों में खुले में शौच पर रोक नही लग सकी है। यहाँ फैली गंदगी इस बात की सहज गवाही देते हैं । सूत्रों की मानें तो शौचालय योजना में कई जरूरतमंद परिवार इसके लाभ से वंचित है। शौचालय योजना में अगर पारदर्शिता के साथ विभागीय जांच हो तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। शौचालय लाभुकों का चयन भी संदेह के घेरे में आ सकता है। लोगों की माने तो ईलाके में शौचालय निर्माण योजना की मिट्टी पलीद है।
उधर बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार सार्वजनिक शौचालयों की निगरानी और रख-रखाव की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों के जिम्मे है। जिसकी निगरानी प्रमुख या मुखिया करेंगे। इसके अलावे सरकार ने गांवों में आवासहीन लोगों के लिए सामुदायिक शौचालय बनाने की योजना बनाई है । सरकार का मानना है के शौचालयों की देखरेख का जिम्मा भी ग्राम पंचायत के अधीन रहेंगे। इसतरह शौचालयों को स्वच्छ रखा जा सकेगा तथा समय-समय देखभाल या फिर सामान्य क्षति की मरम्मत भी करवाई जा सकेगी। ताकि बिहार को खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त किया जा सके। परन्तु सच्चाई यह है के उपरोक्त दावे पूरी तरह धरातल पर नहीं उतर सके हैं । सरकारी स्तर पर बनाये गए कई शौचालय भूसा, लकड़ी और मवेशियों के गोबर से बने उपले रखने के काम आ रहे हैं । शौचालय की भूमि पर उगते पेड़-पौधे उनकी अपनी दास्तान कहते खुद प्रतीत लग रहे हैं ।