नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सशस्त्र बलों के लिए समान पेंशन योजना का विस्तार करने का निर्देश देने संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में कहा गया था कि रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बलों के समान उन्हें भी पेंशन दी जानी चाहिए। क्योंकि हमारे देश में सभी जवान एक समान हैं। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल एवं न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ की पीठ ने कहा कि पीड़ित कर्मियों की कई याचिकाएं पहले से लंबित हैं। पीठ ने कहा कि प्रभावित लोग पहले से ही न्यायालय पहुंच चुके हैं। इसलिए अलग से जनहित याचिका दायर करने की जरुरत नहीं है। पहले से मामला विचाराधीन है। अगर एक व्यक्ति के पक्ष में फैसला आता है तो यह निर्णय सभी सशस्त्र बलों पर लागू होगा। इसके लिए जरूरी नहीं है कि हर व्यक्ति अलग से याचिका दायर करे। पीठ ने कहा कि प्रभावित लोगों का समूह पहले ही इस विषय को लेकर उनके समक्ष पहुंच चुका है। उन्हें पक्ष रखने दिया जाए। सभी की पीड़ा समान है। इसलिए किसी अलग दलील की आवश्यकता नहीं है। साथ ही पीठ ने यह याचिका दाखिल करने वाले जवान को कहा कि वह पूर्व से लंबित याचिकाओं की कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं व उसका हिस्सा बन सकते हैं। पीठ ने इस मामले में याचिका दायर करने वाले ट्रस्ट को अन्य कानूनी उपायों का लाभ उठाने एवं लंबित कार्यवाही में शामिल होने की स्वतंत्रता के साथ अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दी। इस याचिका में कहा गया था कि बीएसएफ, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ आदि भी सशस्त्र बल में हैं। वह भी देश की रक्षा व अन्य कार्यों में बराबर की हिस्सेदारी निभाते हैं फिर उनके साथ भेदभाव क्यों किया जाता है। याचिका में कहा गया है कि पुरानी योजना के तहत उन्हें शामिल नहीं किया गया। केंद्र सरकार का कहना है कि ये सशस्त्र बल रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत नहीं आते हैं। जबकि ये सभी बल 24 घंटे देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं। इन सशस्त्र बलों के हजारों जवानों ने सीमा की रक्षा करते हुए अपनी जान दी है। ये सभी बल गृह मंत्रालय व रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं। फिर क्यों उनके साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है।

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