नई दिल्ली। देश में ब्लैक फंगस के मामले अधिक घातक और खतरनाक साबित होते जा रहे हैं। पिछले साल सितंबर से दिसंबर के बीच देश के 16 सेंटर पर ब्लैक फंगस रोगियों पर एक स्टडी की गई। स्टडी में सामने आया है कि तीन महीने के इलाज के दौरान कोरोना रोगियों के मरने की दर 46 प्रतिशत हो गई है। इस स्टडी में गुजरात के चार सेंटर भी शामिल हैं। स्टडी में देशभर के 16 सेंटर से म्यूकोरमाइकोसिस के 287 रोगियों को शामिल किया गया। इनमें अहमदाबाद और सूरत से एक-एक अस्पताल के अलावा। दिल्ली और भोपाल एम्स भी शामिल थे। प्राइवेट अस्पतालों को सेंटर भी शामिल था।
स्टडी में 287 रोगियों में से, 187 (65प्रतिशत) की पहचान कोविड से जुड़े म्यूकोरमाइकोसिस केस के रूप में की गई थी। इन केंद्रों पर कुल कोविड-19 रोगियों में स्टडी में 2019 में इसी अवधि की तुलना में ब्लैक फंगस के मामलों में दो गुना वृद्धि दर्ज की गई। इनकी संख्या 112 से बढ़कर 231 पहुंच गई। ब्लैक फंगस से पीड़ित रोगियों की औसत उम्र 53 वर्ष है। इनमें से 75 प्रतिशत रोगी पुरुष थे। कुल रोगियों में 33 प्रतिशत या एक-तिहाई रोगियों को डायबिटिज की शिकायत थी। इसके अलावा, 21 प्रतिशत रोगियों वे थे जिनमें कोरोना संक्रमण के बाद डायबिटिज के लक्षण सामने आए थे। स्टडी में ब्लैक फंगस के मरीजों में मृत्यु दर छह सप्ताह में 38 प्रतिशत पाई गई, जो 12 सप्ताह या तीन महीने के इलाज के बाद बढ़कर 46 प्रतिशत हो गई। यह बिना ब्लैग फंगस और ब्लैक फंगस वाले रोगियों में समान था। मृत्यु दर के प्रमुख कारक उम्र, राइनो-ऑर्बिटल सेरेब्रल इन्वॉल्वमेंट और लंबे समय तक आईसीयू में रहना पाया गया।

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