‘बिरसा तुम्हें कहीं से भी आना होगा
घास काटती दराती हो या लकड़ी काटती कुल्हाड़ी
यहां-वहां से, पूरब-पश्चिम, उत्तर दक्षिण से
कहीं से भी आ मेरे बिरसा
खेतों की बयार बनकर
लोग तेरी बाट जोहते।’

ये कविता आदिवासियों के भगवान् माने जाने वाले बिरसा मुंडा के लिए लिखी गई है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन आदिवासी जाती के उत्थान में लगा दिया। बिरसा मुंडा का जन्म आज के ही दिन 1875 में छोटा नागपुर में मुंडा परिवार में हुआ था । मुंडा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार में रहा करता था ।

1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को इकठ्ठा कर बिरसा ने अंग्रेजो से लगान माफी के लिए आन्दोलन छेड़ दिया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो वर्ष जेल की सजा दी गई। किन्तु बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की मदद करने की ठान रखी थी और अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा हासिल कर लिया। उन्हें उस क्षेत्र के लोग “धरती बाबा” के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे क्षेत्र के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।

बिरसा जी 1900 में आदिवासी लोगो को भड़काने के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 वर्ष की सजा हो गई और अंततः 9 जून 1900 मे अंग्रेज़ों द्वारा उन्हें एक धीमा जहर देने की वजह से उनकी मौत हो गई।

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