झारखंड की महागठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री कौन होगा यह तय होने के बाद अब सत्ता पक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती डिप्‍टी सीएम और विधानसभा अध्यक्ष का पद है। अब डिप्टी सीएम को लेकर भी चर्चाओं का जोर तेज है। कांग्रेस इस पद के लिए भले ही दावे ठोक रही है लेकिन यहां भी जातिगत समीकरण अड़चन है। कुल मिलाकर कांग्रेस से तीन वरीय लोगों के नाम इन तीन जगहों पर सेट करने का फॉर्मूला तैयार किया जा रहा है। इन वरीय लोगों में रामेश्वर उरांव के साथ-साथ विधायक दल के नेता आलमगीर आलम और पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह शामिल हैं। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कांग्रेस जातिगत समीकरण को साधना चाहती है। इसके तहत मुख्यमंत्री के आदिवासी बिरादरी से होने के कारण विधानसभा अध्यक्ष दूसरी बिरादरी से होगा। कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव के नाम पर भी किसी को आपत्ति नहीं थी लेकिन इससे कांग्रेस का जातिगत समीकरण फिट नहीं बैठ रहा है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस प्रकार आदिवासी, राजपूत और मुसलमान के जातिगत समीकरण को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाकर कांग्रेस सभी वर्गों को संदेश देने में सफल हो पाएगी। विधानसभा अध्‍यक्ष पद के लिए अभी तक कांग्रेस के सीनियर नेता तैयार होते नहीं दिख रहे हैं। सूत्रों की मानें तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव भी विधानसभा अध्यक्ष नहीं बनना चाहते हैं और जूनियर लोगों को यह जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती है। ऐसे में नई संभावनाओं पर भी विचार किया जा रहा है।

इन महत्वपूर्ण पदों को लेकर कांग्रेस का एक गुट पार्टी छोड़कर झामुमो से चुनाव लड़नेवाले सरफराज अहमद की पैरवी कर रहा है। सरफराज लंबे समय कांग्रेस में बिता चुके हैं और उनसे कांग्रेस को कोई दिक्कत नहीं होगी।गांडेय से लगातार चुनावी तैयारी कर रहे सरफराज अहमद को चुनाव के पूर्व निराशा हाथ लगी जब बताया गया कि समझौते के तहत गांडेय सीट झामुमो के खाते में जा रही है। इसके बाद उन्होंने झामुमो में शामिल होकर चुनाव लड़ा और जीतकर आए। उनके अध्यक्ष बनने को लेकर चल रही चर्चाओं के पीछे जातिगत समीकरण को कारण बताया जा रहा है।

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