उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बडे को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के सिलसिले में एक सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने का आदेश दिया। साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसके बाद समर्पण के लिये समय नहीं बढ़ाया जायेगा क्योंकि महाराष्ट्र में अदालतें काम कर रही हैं। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश देते हुये कहा कि आरोपियों को अग्रिम जमानत रद्द करने के न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हुये तीन सप्ताह के भीतर समर्पण करना चाहिए था। पीठ ने कहा, ‘‘यद्यपि हमें उम्मीद थी कि आरोपी इस न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हुये समर्पण करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया है। हमें बताया गया कि मुंबई में अदालतें काम कर रही हैं। आरोपियों के लिये यह बेहतर होता कि वे समर्पण करते क्योंकि अदालतें खुली हैं और पूरी तरह से बंद नहीं हैं।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, याचिकाकर्ता काफी लंबे समय तक संरक्षण का लाभ उठा चुके हैं, अंतिम अवसर के रूप में हम उन्हें समर्पण करने के लिये एक सप्ताह का समय देते हैं।’’ साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसके बाद उनके समर्पण करने की अवधि आगे नहीं बढ़ाई जायेगी।
न्यायालय ने इन दोनों आरोपियों की अग्रिम जमानत की याचिका 16 मार्च को खारिज करते हुये उन्हें तीन सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने का आदेश दिया था। इन दोनों आरोपियों ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने के बंबई उच्च न्यायालय के 14 फरवरी के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने इन दोनों को गिरफ्तारी से प्राप्त संरक्षण की अवधि चार सप्ताह के लिये बढ़ा दी थी। आरोपियों के वकील का कहना था कि ये कार्यकर्ता पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं और उन्हें समर्पण करने के लिये अधिक समय की आवश्यकता है। पुणे पुलिस ने कोरेगांव भीमा गांव में 31 दिसंबर 2017 की हिंसक घटनाओं के बाद एक जनवरी, 2018 को नवलखा, तेल्तुम्बडे और कई अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ माओवादियों से कथित रूप से संपर्क रखने के कारण मामले दर्ज किये थे।