मदरलैंड संवाददाता, अररिया
बाढ़, सुखाड़ के बाद कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण लगाए गए लॉकडाउन को लेकर सबसे अधिक परेशानी नरपतगंज क्षेत्र के सब्जी उत्पादक किसान व दूध उत्पादक पशुपालक को उठानी पड़ रही है।
नरपतगंज के सोनापुर, नबावगंज, माणिकपुर, बसमतिया, बेला, बबुआन, पलासी, मधुरा उत्तर आदि पंचायतों के किसान अपने खेतों से उत्पादित सब्जियों को स्थानीय बाजारों में किसी तरह तो ले आते हैं। लेकिन बाहरी व्यापारियों के नहीं आने तथा परिवहन और असुविधा के कारण इन किसानों को औने पौने दाम में ही सब्जी बेचने के लिए विवश हो रहे हैं। कमोवेश जिले के अन्य जगहों की यही स्थिति है। इस कारण किसानों व पशुपालकों को इस बार आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। किसानों पर तो दोहरी मार पड़ रही है। लॉकडाउन के चलते दूध की बिक्त्री काफी कम हो गई है। वहीं पशुओं का चारा भी महंगी हो गई है। नरपतगंज के 29 पंचायतों में लॉकडाउन को लेकर किसानों की आर्थिक स्थिति पूरी तरह चरमरा गई है। पशुपालकों के अनुसार यहां प्रतिदिन डेढ़ लाख लीटर से ज्यादा दूध का उत्पादन होता है। पहले यहां के दूध उत्पादक फारबिसगंज बाजार, सुपौल जिला के बीरपुर, छातापुर आदि क्षेत्रों में दूध की सप्लाई करते थे।
आवाजाही बंद होने के बाद किसान अधिकतर दूध गांव में ओने पौने दामों पर बेच रहे है। वहीं पूर्णियां कोशी डेयरी प्रोजेक्ट द्वारा संचालित नरपतगंज के पचगछिया प्लांट में भी पहले चार हजार लीटर दूध किसानों का लिया जाता था लेकिन लाकडाउन के बाद दूध घटाकर दो हजार लीटर तक कर दिया गया है। पशुपालक सुरेन्द्र उर्फ ननकी यादव ने बताया कि उनके डेयरी फार्म पर प्रतिदिन करीब 80 से सौ लीटर तक प्रतिदिन दूध का उत्पादन होता है लेकिन लाकडाउन के बाद एक लीटर भी दूध ब्रिकी नहीं हो सकी है। बाजार के होटल व दुकाने बंद हाने के कारण दूध बिक नहीं रहा है। दूध की बिक्री नहीं होने के कारण डेयरी चला रहे किसानों का कहना है कि गव्य विकास योजना मद से लोन पर गाय खरीद की हुई है। बेंकों का ब्याज लगातार बढ़ता हीं जा रहा है। ऐसे में किसानों के सामने समस्या आ गई है कि आखिर इस दूध का करें क्या। क्योंकि लाकडाउन में वो बाहर भी नहीं निकल सकते। ऐसे मे किसान मजबूरी में दुध को घर में काम ले रहे है। कुछ इसका घी एंव दही बना रहे हैं।