मदरलैंड संवाददाता, गोपालगंज
गोपालगंज। रोज हो रही बेमौसम बारिश के कारण किसानों की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है।अब भी क्षेत्र के बहुत से किसान ऐसे हैं जिनके गेहूँ की फसल की कटाई अब भी नहीं हो पाई है।नतीजन,कटाई की बाट जोह रही सुनहरी फसलें अब स्याह होने लगी है।सोने की भाँति चमक बिखेरने वाली गेंहूँ की पौध काली होने लगी है। विदित हो कि क्षेत्र में गेंहूँ के फसल की कटाई अप्रैल माह में ही हो जाती है,पर इस बार लॉकडाउन के कारण ऐसा नहीं हो सका।क्षेत्र में अधिकतर फसल की कटाई कंबाइन मशीन से होती है।सीमित संख्या में मजदूरों से भी वे किसान कटाई करवाते हैं, जिन्होंने अपने यहाँ मवेशी पाल रखें हैं।पर इस बार कोरोना संक्रमण के कारण हुए देशव्यापी लॉकडाउन ने गेंहूँ कटाई का सारा समीकरण ही बिगाड़ दिया।विदित हो कि गेंहूँ की कटाई करने हेतु कंबाइन ऑपरेटर सूबे से बाहर पंजाब व यूपी से आते हैं, परंतु इस बार लॉकडाउन के कारण कंबाइन ऑपरेटर क्षेत्र में कटाई के लिए देर से पहुँचे।पहले ही देर से पहुँचे कंबाइन ऑपरेटरों के यहाँ पहुँचते ही जिला प्रशासन ने उन्हें एहतियातन क्वारंटाइन कर दिया।इस बीच सीमित संख्या में किसानों ने मजदूरों के द्वारा कटाई आरंभ कर दिया,पर हर एक-दो दिन के अंतराल पर हो रही बारिश ने सारा खेल खराब कर दिया।कुछ किसानों की कटी-कटाई फसलें बारिश के भेंट चढ़ गई तो अधिकतर किसानों की खेत में खड़ी फसल बारिश व ओले से बर्बाद हो गई।अभी आज तक अपनी फसल कटने का इंतजार कर रहे एक किसान भीमशंकर कहते हैं कि किसानों की समस्याओं का अंत नहीं है।मेरी फसल को पके महीने से भी अधिक दिन हो गया।इस बार मजदूरों से फसल कटवाने में व्यय भी अधिक है और रिश्क भी।बारिश की भेंट चढ़ फसल सड़ने का डर लगातार बना हुआ है।दो बार खेत तक फसल कटाई हेतु कंबाइन मशीन ले गया हूँ, एक बार बाहर ही बाहर तो दूसरी बार खेत में जा कर फसने के डर से कंबाइन मशीन वापस आ गई।सोचता हूँ दो-तीन दिन में खेत की नमी और चली जाएगी तो फसल कट जाएगी,परंतु हर एक-दो दिन के अंतराल में बारिश आ जाती है और कटाई रूक जाती है।समझ नहीं पा रहा हूँ क्या करूँ। वहीं एक और किसान विकास पांडे कहते हैं कि इस बार की खेती की तो बात ही मत कीजिए।समझ लीजिए जुआ खेला था,और हार गए।शुरूआत में जब फसल पक कर कटने के लिए तैयार थी तो मन बहुत प्रसन्न था।जब भी गेंहूँ की सुनहरी बालियाँ देखता था, मन प्रसन्न हो जाता था, पर वाम विधाता को तो कुछ और ही मंजूर था।मेरी कटी-कटाई फसल सड़ गई।जो बच गई उसकी दवरी धान वाले थ्रेसर मशीन से करनी पड़ी।नतीजन, पशुओं के चारे के लिए भूसा भी खरीदना पड़ा और गेहूं भी खराब होने का डर बना रहता है।कई बार सोचता हूँ कि गेहूँ बेच दूं परंतु फिर हम खाएंगे क्या?यह सोच कर हर बार ठिठक जाता हूँ।अब तो उपर वाला ही मालिक है। रोज हो रही बारिश ने गेहूँ किसानों के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी है।हालांकि क्षेत्र के अधिकतर किसानों की फसलें अब तक कट चुकी हैं,पर चवर क्षेत्र की फसलें अब भी कटने को बाकी हैं।किसानों को आशा है कि कुदरत के कहर से कुछ तो अनाज बच ही जाएगा।सच में भारतीय कृषि मानसून के साथ एक जुआ है।