– डॉ. आदित्य जैन

शहर सुनसान… सड़के वीरान… मगर बीचों बीच मैदान पर भयंकर भीड़ थी… माहौल टंच था.. “अंतरराष्ट्रीय बीमारी अधिवेशन – 2020” का सजा-सजाया मंच था… तभी माइक से उठी उदघोषणा की टंकार… हलो..वन..टू..थ्री… नमस्कार। मैं अध्यक्ष बुखारी लाल… करता हूं आप सभी बीमारियों का तहेदिल से इस्तकबाल। शीघ्र खत्म होने वाला है आप सभी का इंतजार.. पधारने वाले हैं.. हम सभी के चहेते वायरल सुपरस्टार… चीन से पधारे मुख्य अतिथि श्री कोरोना कुमार। ये वही है जिन्हें हम ‘कोविड-19’ के नाम से जानते हैं। एक बार कमिटमेंट कर ले.. तो ये डॉक्टर की भी नहीं मानते हैं। इन्हीं के कारण इंदौर से इंग्लैंड तक.. हर जगह सन्नाटा है। गणेश जी के बाद दुनिया का सबसे तेज चक्कर इन्होंने ही काटा है। भौतिकता की भागदौड़ में.. जो सर गर्व से तने थे.. वो आज जमीन के दो गज नीचे लेटे हैं। ये कोरोना कुमार का ही प्रभाव हैं कि जिन्हें महाशक्ति होने का दंभ था… वो खुद कटोरा लिए बैठे हैं। तभी अचानक मंच के पास हुआ जोरदार धमाका… भीड़ ने भय और आश्चर्य से झांका… उठने लगा धुआं… बजने लगे ढोल… गूंजने लगे फिजाओं में “जरा जरा टच मी टच मी” के बोल…  अपनी निजी सचिव सर्दी और खांसी के कंधों पर हाथ रखकर नाचते हुए कोरोना कुमार पधारे। उनके स्वागत में सबने छींका, थूका और गले खंखारे। बजने लगी तालियां… उठने लगा शोर… छाने लगा उन्माद। सारी बीमारियां झूमकर बोली..”कोरोना कुमार जिंदाबाद”।

                  हाथ हिलाकर… माइक पर आकर… कोरोना कुमार बोले…”मैं आप सभी की दुआओं का शुक्रगुजार हूं। लेकिन मेरी तरक्की का श्रेय इंसानों को जाता है…जिनकी बदौलत आज हजारों नहीं लाखों के पार हूं। यह कोई नहीं जानता कि मैं प्राकृतिक हूं या जैविक अस्त्र हूं। सच तो ये है कि मैं मानव का, मानव के लिए, मानव द्वारा बनाया गया परम शस्त्र हूं। कायर है वो लोग जो घरों में बैठकर उदासी झेल रहे हैं। वीर तो वो थे… जो लॉकडाउन तोड़कर मेरी खोज में निकले… और अभी यमपुरी में यमदूतों के साथ लूडो खेल रहे हैं। मेरे असली शुभचिंतक तो आज भी लॉकडाउन का विरोध कर रहे हैं। जिंदगीयां दांव पर लगाकर मृत्यु की उपलब्धियों पर शोध कर रहे हैं। सच कहूं तो विरोध तो बस आड़ हैं, दरअसल ये घर पर बैठे ‘खोटे सिक्कों’ को दोबारा चलन में लाने का सस्ता जुगाड़ हैं।

कोई एहसान नहीं मानता कि मैंने उन्हें परिवार के साथ बिताने के अवसर दिए। लेकिन जिन बच्चों की परीक्षाएं रद्द हो गई… मैं तो सुपर हीरो हूँ उनके लिए। डर तो मुझे उन तथाकथित शब्दवीरों से लगता हैं जिन्होंने मेरे नाम पर कच्चा-पक्का सुनाकर बहुत सताया हैं। मुझे तलाश हैं उस व्यक्ति की… जिसने इन कवियों को लाइव आने का तरीका बताया हैं। मेरा दिल अक्सर मानव पर हंसता है और मानवता पर रोता है। मैं अब तक नहीं समझ पाया कि चिकित्सकों और पुलिस वालों को पत्थर मारने से मेरा इलाज कैसे होता है। कोई धर्म की खूंटी पर देश टांग रहा हैं.. कोई राहत के नाम पर बिरयानी मांग रहा हैं। क्या सचमुच राजनीति में नैतिकता जैसे शब्दों का कोई मर्म नहीं होता। मैंने तो सुना था कि राष्ट्र धर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। लगा लो मास्क… ले आओ सैनिटाइजर… मैं वैक्सीन बनाने की धमकियों से नहीं डरूंगा। जब तक नैतिकता के सीने में भौतिकवाद का दंश गड़ा है। मैं तब तक नहीं मरूंगा। लेकिन हां… घरों में बंद लोगों पर हमला करूं.. इतना भी बेईमान नहीं हूं। धोखा नहीं दूंगा साहब… मैं वायरस हूं… इंसान नहीं हूँ।

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