आशीष कुमार,
मदरलैंड संवाददाता, पटना

 कोरोना वायरस और लॉक डाउन में सबसे ज्यादा प्रभावित जो हुए हैं वह है मजदूर,
आज जिस तरह प्रवासी मजदूर लावारिसों  की तरह अपनी सारी जमा पूंजी खर्च करके लॉक डाउन की विभीषिका को झेलने के लिए अपने गांव की तरफ पलायन कर रहे हैं उससे सही साबित होता है कि शहरों की विकास की कीमत गांव ने बुरी तरह चुकाई है और इन बेबस और लाचार मजदूरों पर भी सियासत की रोटियां सेकी की जा रही है।
 मजदूरों को अपने पक्ष में करने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष ऐड़ी- चोटी का जोर लगाए हुए हैं। बाहर फंसे मजदूरों को बिहार आने के लिए विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने लगातार सरकार पर ट्विटर वार करते रहे। तेजस्वी ने तो मजदूरों पर सियासत का निशाना लगाते हुए अपने खर्चे पर लाने का हुंकार भरते रहे, इसकी देखा देखी पप्पू यादव, जीतनराम मांझी  और कांग्रेस ने भी बाहर फंसे श्रमिकों पर अपने अपने म्यान से सियासत के तीर छोड़े। इधर विपक्ष की काट में सत्तारूढ़ नीतीश कुमार ने श्रमिकों को ट्रेन से लाने के बाद  प्रखंड क्वॉरेंटाइन सेंटरों पर प्रवासियों के लिए सभी सुख सुविधाएं, मजदूरों को 3 महीने का राशन और ₹500 से लेकर ₹1000 की घोषणाओं की झड़ी लगा दी।मदद मिली भी,
लेकिन सबसे बड़ा सवाल उठता है कि सत्ता में बैठी सरकार ने मजदूरों की हैसियत को ₹1000 में और 3 महीने के राशन में तौल लिया? क्या अपने राज्य के श्रमवीरों की यही औकात है। इधर क्वॉरेंटाइन सैंटरो की को व्यवस्था की खबरें भी पूरे प्रदेश से आ रही है। कई जगह व्यवस्था के खिलाफ हंगामा भी हुआ है।
 मधुबनी जिले के लौकही प्रखंड के वीडियो ने तो दूरभाष पर कुव्यवस्था के खिलाफ शिकायत करने पर एक प्रवासी मजदूर को सरपंच के पास मुखिया के खिलाफ केस तक करने की सलाह दे डाली है।
 ठीक है, मैं मानता हूं… कुव्यवस्था है, तो वह विपक्ष कहां है जो अपने पैसे से मजदूरों को बिहार लाने की दंभ भरा करता था।
 चेक के द्वारा ट्रेन या बस के टिकट के पैसे भी सरकार को भुगतान करने की बात करता था।
 क्या उस पैसे से क्वॉरेंटाइन सैंटरो पर मदद नहीं पहुंचा सकता? क्या मजदूर सिर्फ़ सियासत के तवे में ही तपते रहेंगे।  सिर्फ ट्विटर के जरिए ही सरकार पर हमला, वाह रे थोथी राजनीति… मतलब सत्ता और विपक्ष के द्वारा मजदूरों की हित की बात बिहार में गुंजायमान हैं, फिर भी मजदूरों की कोई फायदा नहीं, क्योंकि मजदूर है.. इसलिए मजबूर हैं।
 चेत जाओ मजदूरों, तुम्हारा कोई नहीं है।मेहनत के लिए पैदा हुए हो, तुम्हें मेहनत ही करनी पड़ेगी। छोड़ दो इन सरकारों को.. यह गरीबी, मजबूरी और मजदूरी पर ऐसे ही राजनीति खेलते रहते हैं। यह राजनीति के लिए ही पैदा हुए हैं। राजनीति ही करेंगे, तुम श्रम के लिए पैदा हुए हो तुम्हें श्रम ही करना है।
 अजीब विडंबना है लाँकडाऊन  में इंडिया (अमीर) घर में बंद है और भारत (गरीब) सड़कों पर चल रहा है।
 इंडिया वाले ने तो तुम्हें कोरोना की सौगात  दे गए, रोजी-रोटी छीन ली,
 सबको पता है कि कोरोना कहां से आया है। प्लेन पर चढ़कर आया है। वही इंडिया आज घर में बंद है और तुम दर-दर की ठोकरें खा रहे हो।
 इस देश की नौकरशाही हमेशा इंडिया के बारे में सोचती रही है और जब उन्हें अपनी राजनीतिक रोटी सेकनी होती है तभी वह भारत के बारे में सोचता है। मजदूर कोई भिखारी नहीं है जो उसे फ्री में दाल चावल देकर कहा जाए कि तुम घर बैठो तुम्हारी चिंता करने के लिए हम हैं ना.. बाहर में,
 इसलिए मजदूरों चेत जाओ, बस यह मान कर चलो तुम्हारा कोई नहीं बस तुम्हारे नाम पर खाने वाला बाहर बैठा है।

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