शुभम श्रीवास्तव
मदरलैंड संवाददाता, गोपालगंज
गोपालगंज। 24 घंटे तक भाग-भगा कर धारदार हथियारों से लैस दबंगों से जान बचाते पत्रकार का किस्सा सामने आया है। हद तो यह है कि खुद को सुशासन की सरकार बताने वालों के वे अफसर भी इतने बेपरवाह रहे कि पहली बार फ़ोन द्वारा सूचना देने के 24 घंटे बाद तक घटनास्थल पर पहुँचने की जहमत नहीं उठाई। जी हाँ! ये कोई फिल्मी पटकथा नहीं है, अपितु एक सत्य घटना है जिले के बरौली थाने के कहला विशुनपुरा गाँव की। जहाँ के थानेदार हैं रितेश कुमार मिश्र।
क्या है मामला
प्राप्त जानकारी के अनुसार मामला जमीनी विवाद से जुड़ा बताया जा रहा है। पीड़ित पत्रकार राहुल श्रीवास्तव ने बताया कि उनके ही गाँव के पारस उपाध्याय दबंग की दबंगई वाली पृष्ठभूमि है, अतएव वर्षों से मेरे जोत में रही जमीन को उक्त दबंग के द्वारा कब्जा कर के उसमें अरहर की खेती कर दी गई थी। जिसके बाद उपजे विवाद के कारण बरौली थाने की पुलिस द्वारा इस जमीन पर धारा 144 के तहत एक वाद भी पंजीकृत किया गया था। जिसमें दोनों पक्षों के कागजातों को देखने के बाद कोर्ट ने गत फरवरी माह की 18 तारीख को पीड़ित पत्रकार के पक्ष में फैसला दिया था। उक्त फैसले के    वक्त आरोपी पक्ष के द्वारा विवादित जमीन पर अरहर की खेती की गई थी। स्थानीय थाने को कोर्ट के उक्त फैसले की प्रतिलिपि मुहैया कराने के बाद थाने द्वारा कहा गया कि इस बार की अरहर की फसल पारस उपाध्याय को काट लेने दीजिए, उसके बाद आप जमीन जोत लीजिएगा। अब जबकि उक्त जमीन से फसल काट ली गई थी ऐसे में जब पीड़ित शनिवार शाम अपने खेत की जुताई करने पहुँचे, तो पहले से ही घात लगा कर बैठे आरोपी पारस उपाध्याय, दुर्गेश उपाध्याय, जवाहिर उपाध्याय, मुन्ना उपाध्याय, सूरज उपाध्याय उर्फ गुटुन, मुकेश उपाध्याय व अन्य के द्वारा  हाथ में धारदार हथियार लेकर पीड़ित को खदेड़ कर मारने का प्रयास किया गया। जिसके बाद पीड़ित पत्रकार द्वारा जान बचाने के लिए भाग कर दूसरे गाँव में छुप कर शरण लेना पड़ा।
पुलिस की भूमिका संदिग्ध
पीड़ित पत्रकार ने बात करते हुए बताया कि जिस वक्त दबंग उनका पीछा कर रहे थे, उसी वक़्त पीड़ित द्वारा फोन द्वारा इस विवाद की सूचना स्थानीय थानेदार रितेश कुमार मिश्रा को दी गई। जिसे थानेदार द्वारा यह कह कर टाल दिया गया कि उनके द्वारा मौका-ए-वारदात पर गश्ती दल भेजा जा रहा है। इस आश्वासन के काफी देर बाद तक जब पुलिस जब घटना स्थल पर नहीं पहुँची तो पुनः एक बार फिर पीड़ित के द्वारा स्थानीय थाने के साथ ही एएसपी को भी इसकी सूचना दी गई। जिसके बाद भी घटना के अगले दिन तक प्रशासन ने मौके पर पहुँचने की जहमत नहीं उठाई। नतीजन लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया के एक निष्पक्ष पत्रकार को अब भी अपनी जान बचाने के लिए भागना और छुपना पड़ रहा है।  पीड़ित ने बताया कि घटना को 24 घंटे होने को है, परंतु अब तक स्थानीय प्रशासन के द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जो स्वतः ही पुलिस की संवेदनहीनता को उजागर करता है। पीड़ित ने बताया कि इसी जमीन के विवाद के कारण गत वर्ष नवम्बर में उनके पिता की भी मृत्यु हो गई थी। और उन्हें डर है कि उनके साथ भी कहीं कोई अनहोनी न हो जाए।
क्या कहते हैं एसडीपीओ
इस संबंध में एसडीपीओ नरेश पासवान ने बताया कि हम मामला की जांच करवा रहे हैं। जो भी दोषी होगा उस पर उचित कार्रवाई की जाएगी।
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