मदरलैंड संवाददाता,
मोतिहारी ब्यूरो/पू च:- गायघाट से हरसिद्धि मुख्यालय को जोड़ने वाली बाबा सड़क जर्जर हालात में है। 11.8 किलोमीटर लंबी यह सड़क सरकारी उदासीनता के कारण वर्षों से अधर में लटकी है। इसको लेकर सोशल साइट्स पर लोग तमाम तरह के सवाल उठा रहे हैं। आइए हम आपको बताते हैं निर्माण में फंसे पेच की हकीकत।
फिलहाल बिहार में दो विभागों से सड़क निर्माण का काम हो रहा है। पहला, पथ निर्माण विभाग (RCD) से, पहले यह पीडब्ल्यूडी था। दूसरा, ग्रामीण कार्य विभाग (RWO) से। आरसीडी से मुख्य सड़कों का नया काम होता है। वहीं आरडब्ल्यूडी से एमआर (मेंटेनेंस रिपेयरिंग) के तहत काम होता है। आरसीडी का कार्यालय जिला स्तर पर होता है। और आरडब्ल्यूडी का कार्यालय हर अनुमंडल में है। जाहिर सी बात है जब आरसीडी काम कराता है , उसकी गुणवत्ता अलग होती है। जबकि बाबा रोड का निर्माण आरडब्ल्यूडी से होना था।
इसी को लेकर राजद विधायक सह प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र कुमार राम ने विधानसभा सत्र में इस मुद्दे को उठाया। उनकी मांग थी, जब सड़क बननी ही है तो आरडब्ल्यूडी से मेंटेनेंस रिपेयरिंग का काम नहीं हो। पथ निर्माण विभाग (आरसीडी) इसका काम कराए। ताकि सड़क की गुणवत्ता अच्छी हो, मानक और टिकाऊ बने।। उनके अथक प्रयास से सड़क निर्माण का जिम्मा सात महीने पहले ही आरसीडी को मिल गया।
इसको लेकर जिले से पथ निर्माण विभाग (आरसीडी), पटना को योजना का प्रस्ताव (DPRO) भेज दिया गया था। इधर, 01 मई को बिहार के ही एक अखबार की पृष्ठ संख्या 07 पर इस सड़क के टेंडर का विज्ञापन निकला। लेकिन यह टेंडर अरसीडी से नहीं आरडब्ल्यूडी, अरेराज के हवाले से निकला था। जब इस ‘खेला’ को लेकर दोनों विभागों के अधिकारियों से बात की गई तो पढ़िए उनका क्या जवाब मिला।
कार्यपालक अभियंता, आरडब्ल्यूडी, अरेराज ने कहा कि गलती से टेंडर छप गया है। अब उक्त सड़क अरसीडी के अंतर्गत है। बाबा रोड का काम पथ निर्माण विभाग (आरसीडी) ही कराएगा।
वहीं कार्यपालक अभियंता, आरसीडी, पूर्वी चम्पारण ने बताया कि बताया कि बाबा रोड पथ निर्माण विभाग (आरडब्ल्यूडी) के अधीन है। आरडब्ल्यूडी इसका टेंडर कैसे निकाल दिया? हमारी तरफ से योजना का प्रस्ताव विभाग को भेजा गया था। जिसकी मंजूरी मिलते ही टेंडर की प्रक्रिया हो सकेगी।
जबकि विधायक श्री राम कहना है कि सड़क को लेकर प्रधान सचिव से कई दफ़े सम्पर्क किया। योजना को तकनीकी स्वीकृति तो मिल गई है। लेकिन प्रशासनिक (सरकारी) स्वीकृति अभी भी लंबित है। ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है, यह समझने की बात है।
उन्होंने बताया कि जल्द से जल्द योजना की स्वीकृति मिले और टेंडर निकाला जाए। इनको लेकर मैंने छह मई को गायघाट में एक दिवसीय अनशन कर सरकार को 15 दिनों का अल्टीमेटम दिया था। लेकिन अभी तक सुनवाई नहीं हुई। इसीलिए 14 जून से गायघाट में ही अनिश्चितकालीन आमरण अनशन शुरू कर रहा हूं। जब तक स्वीकृति देकर टेंडर नहीं निकाला जाता। अनशन जारी रहेगा।