नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी की फिलहाल दवा और वैक्सीन बनाने की कोशिश तेजी से जारी है। ऐसे वक्त में हमारे वैज्ञानिक उपलब्ध दवाओं और अन्य उपायों के जरिये इससे मुकाबले में जुटे हैं। अभी तक यही हमारे लिए सबसे बड़ी उम्मीद बने हुए हैं। मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज दवा से ठीक होने वाले मरीजों के प्लाज्मा से कोविड-19 मामलों को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन यह अन्य रोगों के लिए भी एंटीबॉडी का निर्माण करता है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज का लक्ष्य वायरस को कोशिकाओं में घुसने से रोकना है। साथ ही कम गंभीर मामलों को अधिक गंभीर होने से रोकता है। अमेरिका में क्लीनिकल ट्रायल के दौरान इसके बेहतर परिणाम मिले हैं और इसके अन्य ट्रायल्स अभी जारी हैं। यह एमके-4482 दवा मर्क की एंटी-वायरल दवा वास्तव में फ्लू के लिए थी।
हालांकि पशुओं पर होने वाले ट्रायल के दौरान इसने कोरोना वायरस को कोशिकाओं में प्रतिकृति बनाने से रोका है। अक्टूबर में इसका मानव परीक्षण बड़े पैमाने पर शुरू होगा। रिकांबिनेंट एसीई-2 दवा कोरोना वायरस को एक तरह का झांसा देता है, जिसमें शरीर के एसीई-2 प्रोटीन के स्थान पर कोरोना वायरस फंस जाता है। इसे लेकर जो भी बात सामने आई है, वह कोशिका पर प्रयोगों के जरिये ही सामने आई हैं। अभी तक किसी भी तरह के ट्रायल नहीं हुए हैं। अमेरिकी शोध में सामने आया कि ओलिएंडर पौधे से तैयार ओलिएंडिन सत्व कोरोना से संक्रमित बंदर की कोशिकाओं में बहुत कारगर है। यद्यपि अभी तक मानवों में इसके निष्कर्षो के बारे में पता नहीं चला है। इसके साथ ही ओलिएंडर का विषैलापन भी विशेषज्ञों को चिंतित कर रही है। कोशिकाएं वायरस के जवाब में इंटरफेरोंस प्रोटीन का इस्तेमाल करती हैं। शोध में सामने आया है कि सिंथेटिक इंटरफेरोंस कोरोना वायरस को पछाड़ सकता है, जो कि अपने प्राकृतिक उत्पाद के जरिये इसे नष्ट कर सकता है। इसके शुरुआती परिणाम उम्मीद जगाते हैं। इवरमेक्टिन दवा के बारे में ऑस्टेलिया में 40 साल पुराने परजीवी कीड़ों के इलाज ने दर्शाया है कि यह कोशिका के नियंत्रित विकास के दौरान प्रक्रिया में कोरोना वायरस से लड़ने में सक्षम है। हालांकि पशुओं और मानव में कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता अभी तक अप्रमाणित है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे कोविड उपचार का एक हिस्सा बनाया है। आगरा में इसके आशावादी नतीजे सामने आए हैं
डेक्सामेथासोन दवा मध्यम और गंभीर कोविड मामलों में काम आती है। यह एक पुराना और सस्ता स्टेरॉयड है, जो कि इम्युन सिस्टम की अतिरिक्त प्रतिक्रिया को रोकता है। जिसके कारण बीमारी से लोगों की मौत हो जाती है। अंतरराष्ट्रीय ट्रायल्स में सामने आया है कि स्टेरॉयड के कारण मरीजों की मौतों में एक तिहाई की कमी आ गई इसके साथ ही कोविड-19 से लड़ने में अन्य बीमारियों की दवाएं भी काम में ली जा रही हैं। रेमिडेसेवियर वास्तव में इबोला और हैपेटाइटिस सी के लिए थी, लेकिन आपातकालीन स्थिति में इसके कोविड-19 के लिए प्रयोग की अनुमति दी गई है। वहीं दूसरी ओर फेविपिराविर वास्तव में इंफ्लूएंजा की दवाई है। हालांकि यह कोरोना वायरस की आनुवांशिक प्रतिकृति बनाने की क्षमता को रोकती है। हालांकि अभी इसके अधिक ट्रायल की जरूरत है। जिससे कि इसके प्रभावों का सही-सही आकलन किया जा सके। बता दें ‎कि कोरोना के मामले वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ते जा रहे हैं। 3.27 करोड़ लोग कोविड-19 महामारी से संक्रमित हो चुके हैं और मौतों का आंकड़ा 10 लाख के बहुत नजदीक तक पहुंच चुका है।

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