नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें वैचारिक मतभिन्नता के कारण यदि लोगों को निशाना बनाती हैं, तो उन्हें यह बात मालूम होनी चाहिए कि नागरिकों की आजादी की रक्षा के लिए देश का शीर्ष न्यायालय मौजूद है। वह इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कि पीठ ने कहा कि यदि इस तरह से किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया जाता है तो यह न्याय का मजाक बनाना होगा। पीठ ने रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को अंतरिम जमानत देने का आदेश देते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने कहा, हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला आ रहा है, जिसमें हाईकोर्ट जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर पूछताछ की कोई जरूरत थी। यह व्यक्तिगत आजादी से जुड़ा मामला है। भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के तने और व्यंग्य) नजरअंदाज करना चाहिए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता। लेकिन, यदि संवैधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा, तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे। सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे। आप टेलीविजन चैनल को नापसंद कर सकते हैं।

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