गुवाहाटी। असम में सत्तारूढ़ भाजपा को विपक्षी गठबंधन से चुनौती तो मिल रही है, लेकिन उसे इस बार अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिलने का भरोसा भी है। इसके लिए पार्टी ने ऊपरी असम के साथ निचले असम के लिए भी व्यापक रणनीति बनाई है। उसने बोडो क्षेत्र में नया सहयोगी भी जोड़ा है। साथ ही नया विपक्षी गठबंधन भी उसके लिए फायदेमंद हो सकता है। असम की चुनावी रणनीति की कमान गृहमंत्री अमित शाह संभाले हुए हैं। पांच साल पहले अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष रहते हुए ही भाजपा ने राज्य में सत्ता हासिल की थी। तब से अब तक भाजपा आगे ही बढ़ी है। इस बार भी अमित शाह ने राज्य में चुनावी रणनीति पर अमल करना शुरू कर दिया है। शाह ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत नलबाड़ी से की है जो निचले असम का प्रमुख हिस्सा है। हालांकि भाजपा को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ और वामपंथी दलों के साथ गठबंधन किया है। शाह इसी गठबंधन को मुख्य चुनावी मुद्दा बना रहे हैं। असम में घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा रहा है और असम का एक बहुत बड़ा वर्ग एआईयूडीएफ को घुसपैठ के लिए जिम्मेदार मानता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस और बदरुद्दीन का गठजोड़ कागजों पर भले ही मजबूत दिखे, लेकिन असम के लोगों की सोच के विपरीत है। इससे बदरुद्दीन की एआईयूडीएफ को तो फायदा मिलेगा, लेकिन कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। भाजपा ने इस बार असम गण परिषद के साथ स्थानीय गण शक्ति पार्टी और बोडो क्षेत्र की प्रभावी यूपीपीएल के साथ गठबंधन किया हुआ है। पिछली बार बीपीएफ के साथ उसने सरकार बनाई थी और बीपीएफ अभी भी सरकार में शामिल है। लेकिन हाल में हुए बोडो स्वायत्त परिषद के चुनाव में दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। इस बार विधानसभा चुनाव में बीपीएफ उसके गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी। राज्य की 126 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने पिछली बार 61 सीटें जीती थी और वह बहुमत से चार सीटें दूर रह गई थी। उसने असम गण परिषद, बीपीएफ और निर्दलीय के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। अगप के 14 और बीपीएफ के 11 और एक निर्दलीय विधायक उसके साथ था। दूसरी तरफ विपक्ष घटकर मात्र 34 सीटों पर आ गया था। इसमें कांग्रेस 20 और एआईयूडीएफ के पास 14 सीटें थी। इस बीच कांग्रेस के कई नेता भाजपा में आ गए हैं। भाजपा महासचिव दिलीप सैकिया से चुनाव हारने वाले बड़े नेता भुवनेश्वर कलिता भी अब भाजपा के साथ खड़े हैं। तरुण गोगोई के निधन के बाद कांग्रेस कमजोर पड़ी है और उसमें नेतृत्व को लेकर भी विवाद बने हुए हैं। ऐसे में भाजपा के लिए इस बार मुश्किलें कम होगी। हालांकि भाजपा नेतृत्व ने विपक्षी गठबंधन को हल्के में नहीं लिया है और उसने अपनी क्षेत्रीय रणनीति को मजबूत किया है। भाजपा ने पिछली बार ऊपरी असम की 37 सीटों में 21 सीटें जीती थी, जबकि निचले असम की 27 सीटों में 12 सीटें जीत पाई थी। इस बार पार्टी निचले असम पर ज्यादा जोर दे रही है और अपनी सीटों को बढ़ाने की तैयारी में है। बराक घाटी में पार्टी का दावा एक दर्जन सीटें जीतने का है। गुवाहाटी और आसपास के क्षेत्र में भाजपा पहले से मजबूत है। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने दौरे कर राज्य में चुनावी माहौल को गरमा दिया है। शाह ने राज्य में घुसपैठ को बड़ा मुद्दा बनाकर कांग्रेस और एआईयूडीएफ के गठबंधन को लेकर असम के लोगों को घुसपैठ की समस्या को लेकर चेताया की है। भाजपा नेताओं का मानना है कि यह मुद्दा उस के पक्ष में काम करेगा।

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