कोलकाता। कोलकाता से 150 किलोमीटर दूर नंदीग्राम में ममता बनर्जी बनाम शुभेंदु अधिकारी का संग्राम किस अंजाम तक पहुंचेगा, इस पर सियासी नब्ज टटोलने वालों की नजर टिकी है। नंदीग्राम ही वह स्थल है, जहां से ममता की जमीनी लड़ाकू नेता की छवि पूरे देश मे निखरी। हालांकि इस सीट पर ममता का नाम और तृणमूल कांग्रेस पार्टी का झंडा लेकर शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार ने मजबूत आधार तैयार किया। यहां तृणमूल के बैनर तले अधिकारी परिवार का चुनावों में दबदबा रहा। अब ममता के बाद शुभेंदु भी इस सीट से एक बार फिर नामांकन दाखिल कर चुके हैं तो बड़ा सवाल यही है कि क्या नंदीग्राम तृणमूल के गढ़ के रूप में बरकरार रहेगा और ममता ये सीट जीत पाएंगी।

यह सीट अधिकारी परिवार के बर्चस्व को ही पुख्ता करेगी

या फिर यह सीट अधिकारी परिवार के बर्चस्व को ही पुख्ता करेगी और यहां शुभेंदु की साख के बहाने भाजपा का प्रवेश हो पाएगा। दरअसल नंदीग्राम ममता की लड़ाकू संघर्षशील राजनीति की कर्मस्थली रही है। इसी संघर्ष के दम पर उन्होंने 34 साल से जमे हुए सीपीएम को 2011 में उखाड़ कर फेंक दिया था। हालांकि इसके पहले उपचुनाव में ही ये सीट तृणमूल के कब्जे में आ गई थी। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट पर भाजपा को साढ़े पांच फीसदी से भी कम वोट मिले थे। नंदीग्राम विधानसभा में 2 ब्लॉक हैं। नंदीग्राम एक और नंदीग्राम दो, ब्लॉक संख्या एक में तकरीबन 35 फीसदी मुस्लिम वोट बताए जाते हैं। जबकि दूसरे ब्लॉक में 15 फीसदी अल्पसंख्यक है।

मिलाकर ये वोट तकरीबन 62000 के आसपास हो जाता है। जबकि नंदीग्राम

कुल मिलाकर ये वोट तकरीबन 62000 के आसपास हो जाता है। जबकि नंदीग्राम में कुल मतदाता सवा दो लाख के करीब हैं। नंदीग्राम की लड़ाई इस बार कई मायनों से अहम हो गई है। ममता के खिलाफ उनके अपनों की बगावत को जनता का समर्थन मिलता है या नहीं इसकी दिशा यहां से तय होगी। भाजपा के पक्ष में जिस हवा का दावा किया जा रहा है उसका आधार कितना मजबूत है यह नंदीग्राम की जमीन पर चुनावी फिजा से तय हो जाएगा। शुभेंदु की अपनी साख क्या पार्टी से बड़ी हो गई है या वे ममता की छत्रछाया में ही यहां राजनीति चमकाने में सफल हुए थे इसका इम्तिहान भी इस जमीन पर होना है। फिलहाल बंगाल की सियासी जंग में नंदीग्राम सबसे चर्चित चुनाव क्षेत्र बन चुका है और यहां ममता और शुभेंदु के अलावा किसी त्रिकोण के लिए गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। अन्य उम्मीदवार किसका कितना नुकसान या फायदा करेंगे फिलहाल ये चर्चा भी ज्यादा नही है।

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