करीब तीन साल से लंबित हैं चुनाव
भोपाल। प्रदेश की सहकारी संस्थाओं के चुनाव फिर टल सकते हैं, क्योंकि इन संस्थाओं का अमला स्थानीय निकाय के चुनाव और अनाज की खरीदी के कामों में व्यस्त है।माना जा रहा है कि अब बारिश के बाद ही समितियों के चुनाव होंगे। तब तक संस्थाओं का काम चलाने के लिए मौजूदा प्रशासक वाली व्यवस्था ही प्रभावी रहेगी। इन्हें मदद करने के लिए नए संशोधन के हिसाब से सलाहकार समिति बनाई जा सकती है। मालूम हो कि इस बार ढाई हजार से ज्यादा सहकारी समितियों को समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदने का जिम्मा सौंपा गया है। खरीद का काम मई तक चलेगा। ऐसे में चुनाव की संभावना नहीं है क्योंकि पूरा अमला इसी काम में लगा रहेगा। प्रदेश में लगभग सवा चार हजार सहकारी समितियां और 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंक हैं। इन सभी के चुनाव करीब तीन साल से लंबित हैं। इसके लिए बार-बार सदस्यता सूची भी तैयार की गई पर चुनाव नहीं हो पाए। इस दौरान समिति के संचालक बनने के लिए अऋणी सदस्य और गैर कृषकों के प्रतिनिधि को पात्रता देने का संशोधन नियमों में हो गया। इसके तहत सदस्यता सूची तैयार होनी है। उधर, विधानसभा सचिवालय ने सहकारी अधिनियम संशोधन विधेयक को राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के पास अनुमति के लिए भेज दिया है। अनुमति के मिलते ही विभाग इसे लागू करेगा। इसमें प्रशासकों की मदद के लिए सलाहकार समिति बनाई जाएगी।राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकार मनीष श्रीवास्तव का कहना है कि सदस्यता सूची में सुधार का काम चल रहा है। समितियां गेहूं की खरीद के काम में व्यस्त हो गई हैं। पूरा अमला इसी काम में लगा है। सदस्य किसान भी इसमें जुटे हैं। वहीं, पंचायत और निकाय चुनाव की तैयारी भी चल रही है। ऐसे में चुनाव प्रभावित हो सकते हैं। वहीं, सहकारिता विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कोरोना संक्रमण की स्थिति, समितियों के गेहूं खरीद करने, किसानों के उपज बेचने, पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव की तैयारी को देखते शासन अंतिम निर्णय लेगा।