-सीपीएसयू योजना चरण-दो के तहत शुल्क ‘कोट’ की जरूरत नहीं, बोलीदाताओं को केवल वीजीएफ के बारे में बताना है
नई दिल्ली। संसद की एक समिति ने नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) से केंदीय लोक उपक्रमों द्वारा ग्रिड से जुड़ी सौर परियोजनओं की योजना के तहत क्षमता वृद्धि लक्ष्य बढ़ाने को कहा है। साथ ही समिति ने इन इकाइयों की अधिक भागीदारी के लिये उन्हें प्रोत्साहित करने को लेकर सक्रियता से कदम उठाने को कहा है। मंत्रालय परियोजना को व्यावहारिक बनाने के लिये वित्तपोषण (वीजीएफ) के साथ केंद्रीय लोक उपक्रमों (सीपीएसयू) द्वारा ग्रिड से जुड़ी सौर फोटोवोल्टिंग बिजली परियोजनाएं लगाने की योजना क्रियान्वित कर रहा है। योजना के तहत इन परियोजाओं का क्रियान्वयन देश में विनिर्मित सौर सेल और मॉड्यूल के साथ हो रहा है। ऊर्जा पर संसद की स्थायी समिति ने इस महीने संसद में पेश अपनी 17वीं रिपोर्ट में कहा, केंदीय लोक उपक्रमों और सरकारी विभागों द्वारा ग्रिड से जुड़ी सौर परियोजनाओं की योजना के तहत क्षमता वृद्धि लक्ष्य बढ़ाया जाना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘चूंकि अबतक केवल कुछ ही केंद्रीय लोक उपक्रम योजना में भाग ले रहे हैं, ऐसे में मंत्रालय को और सीपीएसयू/सरकारी विभागों को इसमें भागीदारी को लेकर प्रोत्साहित करने को लेकर सक्रियता के साथ कदम उठाने चाहिए।’’ योजना के तहत वीजीएफ उपलब्ध कराने के बारे में एमएनआरई ने कहा कि परियोजना को व्यावहारिक बनाने के लिये वित्तपोषण का मकसद घरेलू रूप से विनिर्मित सौर पीवी सेल और मॉड्यूल तथा आयातित उपकरणों की लागत के बीच अंतर को पाटना है। एमएनआरई ने यह भी कहा कि सीपीएसयू योजना चरण-दो के तहत शुल्क ‘कोट’ करने की जरूरत नहीं है और बोलीदाताओं को केवल वीजीएफ के बारे में बताना होता है। इसके तहत अधिकतम स्वीकार्य सीमा 70 लाख रुपये प्रति मेगावॉट है। योजना के पहले चरण के तहत नौ सीपीएसयू ने इसमें भाग लिया। ये कंपनियां हैं, एनटीपीसी, भेल, राष्ट्रीय इस्पात निगम, एनएचपीसी, ओएनजीसी, गेल, स्कूटर्स इंडिया, दादरा एवं नगर हवेली पावर डिस्ट्रिब्यूशन कॉरपोरेशन और एनएलसी इंडिया। इस योजना के दूसरे चरण में 12,000 मेगावॉट क्षमता सृजित करने के लक्ष्य के तहत सात सीपीएसयू/सरकारी संगठनों ने इसमें भाग लिया। ये कंपनियां हैं एनएचडीसी, सिंगरेनी कोलियरी कंपनी, असम पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी, दिल्ली मेट्रो रेल निगम, नालंदा विश्विविद्यालय, एनटीपीसी और इंदौर नगर निगम। समिति ने यह भी कहा कि छतों पर लगायी जाने वाली सौर परियोजनाओं का लक्ष्य तबतक हासिल नहीं किया जा सकता जबतक समुचित तरीके से ‘नेट/ग्रॉस मीटरिंग’ व्यवस्था लागू नहीं की जाती। इसके अलावा नियमन/परिचालन प्रक्रिया आदि के संदर्भ में एकरूपता भी जरूरी है। ग्रॉस मीटरिंग में उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति निश्चित दर पर कुल सौर बिजली उत्पादन और ग्रिड से उसे जोड़े जाने के आधार पर की जाती है जबकि नेट मीटरिंग में ग्राहकों की खपत के बाद जो सौर बिजली ग्रिड से जोड़ी जाती है, उसका भुगतान किया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार सभी राज्य/संयुक्त बिजली नियामक आयोग ने ‘नेट मीटरिंग नियमन/शुल्क आदेश जारी किया है लेकिन इस संदर्भ में एकरूपता का अभाव है।

Previous articleदेश की सड़कों पर दौड़ रहे हैं 15 साल से अधिक पुराने 4 करोड़ वाहन, कर्नाटक टॉप पर
Next articleइंग्लैंड के नए पाठ्यक्रम में भारतीय शास्त्रीय संगीत, बॉलीवुड हिट और भांगड़ा शामिल

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here