इंदौर। प्रयागराज निवासी पंडित श्री विंश्वम्भरनाथ तिवारी जी सारा जीवन बेबाक़ी से भारतीय सनातन मूल्यों, संस्कृति और देशहित के लिए शोधपरक शैली में अपने विचारों को लिखते रहे. स्वतंत्रता सेनानी एवं भारत रत्न महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी के स्वतंत्रता से पूर्व प्रारम्भ समाचार पत्र ‘लीडर’ में उपसंपादक रहे पंडित विश्वम्भरनाथ तिवारी जी बड़े परिवार की ज़िम्मेदारियों के कारण कभी पुस्तक प्रकाशन की ओर ध्यान नहीं दे पाए. इंदौर में रहने वाली उनकी बड़ी बेटी साहित्यकार श्रीमती पद्मजा बाजपेयी ने लगभग 102 वर्ष की आयु के पिता की पहली पुस्तक – “आर्यावर्त से इण्डिया बरास्ते भारत” प्रकाशित की. बाद में मालूम करने पर ज्ञात हुआ कि यह तो सर्वाधिक आयु में प्रथम कृति के लेखक का विश्व कीर्तिमान स्थापित हुआ है. तमाम विश्व रिकॉर्ड बुक्स ने इस कीर्तिमान को पूरी तहक़ीकत के बाद इस विश्व कीर्तिमान को मान्यता देने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है और लंदन बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स ने विश्व कीर्तिमान स्थापना का सर्टिफिकेट भी भेज दिया है. निश्चय ही इससे भारत का मान बढ़ा है.

स्वयं भी कवियित्री श्रीमती पद्मजा बाजपेयी ने अपने पिता के सौ वर्ष पूरे होने पर उनके आलेखों की पुस्तक प्रकाशित उन्हें भेंट करने की योजना बनाई थी. लेकिन कोविड एवं अन्य कारणों से यह योजना टलती गई और अंततः लगभग 102 वर्ष की आयु में पंडित श्री विश्वम्भरनाथ तिवारी जी की पहली कृति “आर्यावर्त से इण्डिया बरास्ते भारत” पद्मजा प्रकाशन से प्रकाशित हो सकी। बाद में जिज्ञासावश गूगल करने पर ज्ञात हुआ कि सर्वाधिक आयु में प्रथम कृति प्रकाशन का विश्व कीर्तिमान इंग्लैण्ड की सुश्री बर्था वुड के नाम था, जिन्होंने सौ वर्ष की आयु में अपनी पहली कृति प्रकाशित की थी. अब ओवरऑल कैटेगरी का रिकॉर्ड श्री विश्वम्भरनाथ तिवारी जी के नाम है, जबकि महिला लेखिका के रूप में यह रिकॉर्ड सुश्री बर्था वुड के नाम है. वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्ड के प्रेसीडेंट सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता श्री संतोष शुक्ला जी ने यह रिकॉर्ड भारतीय के नाम होने पर विशेष प्रसन्नता ज़ाहिर करते हुए श्री तिवारी को बधाई प्रेषित की है.
रिकॉर्ड के अलावा श्री विश्वम्भरनाथ तिवारी जी की पुस्तक अपने कथ्य, शैली और शोधपरकता से भी विद्वानों को प्रभावित कर रही है. देश में पिछली सदी के दौरान सांस्कृतिक परिवर्तनों पर उनकी पैनी निगाह दर्शाती है कि वास्तव में एकबार जो पत्रकार बन जाए, उसकी दृष्टि में पत्रकारिता हमेशा के लिए बस जाती है. रेलवे की अपनी नौकरी के में बाद भी उनकी लेखन एवं अवलोकन और विश्लेषण क्षमता वैसी ही रही. मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक श्री विकास दवे ने पुस्तक पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि श्री विश्वम्भरनाथ तिवारी जी द्वारा रचित पुस्तक “आर्यावर्त से इंडिया बरास्ते भारत” को पढ़ना मानो अपनी जड़ों से जुड़ने और मन में ऊर्जा का स्फूरण पैदा करने जैसी अनुभूति देता है। पूज्य श्री विश्वंभरनाथ तिवारी जी की जिजीविषा हमें सबसे अधिक प्रभावित करती रही. आज जबकि कृत्रिम जीवन शैली ने मनुष्य की अवस्था को समेटते-समेटते 100 वर्ष से 60 वर्ष तक लाकर खड़ा कर दिया है, इतना ही नहीं तो 35 40 वर्ष की अवस्था से ही भिन्न-भिन्न रोगों से ग्रस्त होकर शेष 25-30 वर्ष का जीवन जीने वाले लोग युवा अवस्था से ही निराशा के गर्त में डूबते चले जाते हैं। ऐसे में शताधिक वय को प्राप्त करना प्रकृति को तो चुनौती है ही, आधुनिक जीवन शैली के अभिशाप में उलझी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद संदेश भी है। श्री तिवारी जी का 102 वर्ष की अवस्था में सक्रिय जीवन जीते हुए लेखन कर्म में प्रवृत्त रहना अत्यंत गौरवशाली विषय है. आर्यावर्त की गौरवशाली आर्य परंपरा के प्रति श्रद्धा का भाव रखने वाले आदरणीय विश्वंभर नाथ तिवारी जी जीवन भर सक्रिय आर्य समाजी रहे। महर्षि दयानंद सरस्वती जी की ज्ञान परंपरा के वे कुशल उपासक हैं। स्वाभाविक रूप से आर्य समाज का काम करते हुए उन्होंने धर्म ग्रंथों का तो अध्ययन किया ही, ऐसे प्रश्नों पर भी पर्याप्त अध्ययन किया जिन प्रश्नों से आज के युग के साहित्यकार कन्नी काटते नजर आते हैं।
प्रयागराज के सुपरिचित साहित्यकार श्री रविनंदन सिंह ने कहा कि आज जब मनुष्य किताबों, पठन-पाठन से दूर होता जा रहा है, ऐसे में विभिन्न ग्रंथों का गहन अध्ययन, उनका तुलनात्मक विश्लेषण और उसमें से कुछ गूढ़ खोजना, निःसंदेह श्री तिवारी जी की दुर्लभ उपलब्धि है. उनका चिंतन और विचारधारा स्वतंत्र है और किसी भी संस्था या परम्परा का अंधानुकरण नहीं करती। वे अपने अध्ययन, चिंतन और मनन से जो महसूस करते उसे पूरी ईमानदारी और बेबाकी से अभिव्यक्त करते रहे. उनकी तार्किक और सप्रमाणिक लिखने की शैली अत्यंत प्रभावी है. श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के साहित्य मंत्री श्री हरेराम बाजपेयी ने कहा कि उनका अध्ययन बहुत गहन रहा और उनके लेखन में राष्ट्र प्रेम, धर्म के प्रति निष्ठा और संस्कृति के प्रति लगाव स्पष्ट परिलक्षित होता है. पण्डित श्री विश्वम्भरनाथ तिवारी जी की लेखन शैली एवं सोचने का तरीका एकदम युवा समदृश्य रहा. यह शब्दों की ताक़त है, जो उन्हें ऊर्जा, ऊष्मा और ऊँचाइयाँ देती रही. उनके लेखन में वे किसी बालक की तरह जिज्ञासु नज़र आते हैं, किसी नवयुवक की तरह अध्यवसायी और किसी प्रौढ़ – बुज़ुर्ग की तरह विश्लेषण क्षमता से भरे. मैं उनके देश और सनातन संस्कृति के प्रति समर्पण को नमन करता हूँ.
पंडित श्री तिवारी की पुस्तक विश्वविख्यात चित्रकार श्री बिजय बिस्वाल ने शीर्षकानुसार रेलवे और भारत की यात्रा जोड़कर बनी नयनाभिराम कृति से सुसज्जित है. ज्ञातव्य है कि श्री बिजय बिस्वाल अपनी वॉटर कलर की पेंटिंग्स के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते है और रेलवे तथा प्लेटफॉर्म उनके प्रिय विषय रहे हैं. प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी उनकी कला की सार्वजनिक सराहना कर चुके हैं. देश के अनेक स्वनामधन्य विद्वानों के पूरोवाक भी इसमें हैं. श्री तिवारी की पुस्तक क्रांतिकारी लेखन की लुप्त रही विधा का दुर्लभ आस्वादन कराती है और कई मायनों में भारतीय साहित्य के इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान बनाने में सफल है.

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