भारत इस वक्त कोरोना संक्रमण की चपेट में है, संकट के इस दौर में दुनिया के कई देश भारत की मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं। अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस समेत कई देश भारत के साथ खड़े हैं। चीन ने भी मदद का भरोसा दिया है, लेकिन दूसरी ओर चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज आने को तैयार नहीं है। ड्रैगन ने गुस्ताखी करते हुए एक बार फिर भारतीय सीमा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। चीनी सेना ने पूर्वी लद्दाख क्षेत्रों में स्थायी आवास बना लिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक चीन पूर्वी लद्दाख में सेना की तैनाती शुरू कर दी है।

लॉकडाउन ही अब उपाय
भारत में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर जिस तरह से तांडव मचा रखी है, वह बेहद ही चिंताजनक है। इस चेन को तोडऩे के लिए कुछ हफ्तों के लिए देश को तत्काल बंद करने की जरूरत है। लॉकडाउन लागू करने से कोविड पर बहुत हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है, यह बात अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन के मुख्य चिकित्सा सलाहकार डॉ एंथनी एस फौसी ने कही। लोगों को इस वक्त कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। बेकाबू हो रहे कोरोना की वजह से भारत इस समय कठिन दौड़ से गुजर रहा है। ऐसे में तत्काल रूप से क्या करना जरूरी है जिससे महामारी पर लगाम लग सके।

 

महंगा हो सकता है पेट्रोल-डीजल
पिछले दो महीनों से देश में तेल कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतें नहीं बढ़ाई हैं। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम 67 डॉलर के स्तर पर मंडराता रहा। हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि दो मई यानी चुनाव नतीजों के बाद इस ट्रेंड में बदलाव देखा जा सकता है। बता दें कि पिछले दो महीने से तेल कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया यानी पिछले दो महीनों से तेल की कीमतें स्थिर हैं। 27 फरवरी से तेल की कीमतें नहीं बदली गई हैं। हालांकि मई के पहले महीने में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।

अमेरिका-चीन में टकराव
कई दशकों से ताइवान के मामले में अमेरिका और चीन के बीच तमाम विरोधाभासों के बावजूद शांत बनी हुई है। चीनी नेताओं का कहना है कि केवल एक ही चीन है जिस पर उनका शासन है। ताइवान तो उसका विद्रोही हिस्सा है। अमेरिका केवल एक चीन के विचार से सहमत तो है पर उसने बीते 70 साल यह सुनिश्चित करने में गुजार दिए कि दो चीन हैं। अब इस सामरिक विरोधाभास के टूटने की आशंका है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है, चीन अपनी फौजी ताकत के बूते ताइवान पर कब्जा कर सकता है। ऐसी स्थिति में अमेरिका युद्ध में कूद सकता है। परमाणु हथियारों से लैस दो महाशक्तियों के बीच युद्ध से दुनिया की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा।

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