नई दिल्ली। ताजा अध्ययन में पता चला है कि मानवजनित बड़ी मात्रा में किया जाने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हमारे वायुमंडल की अहम परत समतापमंडल को सिकोड़ रहा है और उसे पतला करता जा रहा है। इस बदलाव का असर हमारी जलवायु के साथ हमारे सैटेलाइट के कामकाज पर पड़ रहा है। अध्ययन के अनुसार वायुमंडल के समतापमंडल की परत साल 1980 के मुकाबले 400 मीटर संकुचित हो गई है और साल 2080 तक एक किलोमीटर और कम हो जाएगी अगर उत्सर्जन में भारी कटौती ना की गई तो। इसका सीधा असर हमारे जीपीएस नेविगेशन सिस्टम और रेडियो संचार माध्यमों पर पड़ रहा है। यह ताजा खोज दर्शाती है कि इंसान का इस ग्रह पर कितना गहरा प्रभाव पड़ रहा है। पिछले महीने वै5निकों ने दर्शाया कि जलवायु परिवर्तन का संकट पृथ्वी के घूर्णन की धुरी को बदल रहा है क्योंकि बड़े पैमाने पिघलते ग्लेशियर पूरी पृथ्वी पर फैले पानी और बर्फ के भार के वितरण को बदल रहे हैं।
समतापमंडल पृथ्वी की सतह से 20 से 60 किलोमीटर तक फैला है जिसके नीचे पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे निचली परत क्षोभमंडल है जहां इंसान सहित पृथ्वी का पूरा जीवन मौजूद है। क्षोभमंडल में ही कार्बनडाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें गर्म होकर हवा को फैला रही हैं। इससे समतापमंडल की निचली सीमा ऊपर की ओर खिसक रही है लेकिन इसके साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड समतापमंडल में भी घुस रही है जहां हवा ठंडी होती है जिससे समतापमंडल संकुचित हो रहा है। स्पेन में विगो ओरेनसे यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ और इस अध्ययन का हिस्सा रहे जॉन एनेलका मानना है कि समतापमडंल का सिकुड़ना एक तरह से जलवायु आपताकाल का गंभीर संकेत है और ग्रहों के स्तर पर मानव के प्रभाव को दर्शा रहा है। उनके मुताबिक यह बहुत चौंकाने वाला है। इससे पता चलता है कि हमें वायुमडंल में 60 किलोमीटर ऊपर तक गड़बड़ी कर रहे हैं। वैज्ञानिक पहले से जानते थे कि क्षोभमंडल की ऊंचाई कार्बन उत्सर्जन के बढ़ने से बढ़ रही है और उन्होंने यह भी मान लिया था कि समतापमंडल सिकुड़ रहा होगा। लेकिन नए अध्ययन इसे पहली बार साबित किया है और दर्शाया है कि यह कम से कम 1980 के दशक से सिकुड़ रहा है जब पहली बार सैटेलाइट के आंकड़े जुटाए गए थे।
पहले शोधकर्ताओं का लगा था कि समतापमंडल का सिकुड़ने की वजह ओजोन परत का कमजोर होना है, लेकिन नए शोध ने इसका कारण कार्बन डाइऑक्साइड का ऊपर उठना बताया है।पृथ्वी पर मानवजनित गतिविधियों के कारण वैज्ञानिकं ने नए भूगर्भीय युग की घोषणा की है और उसे एंथ्रोपोसीन नाम दिया है। इसमें आणविक परीक्षणों द्वारा बिखरे रेडियोधर्मी तत्व, वायु प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण आदि ने पृथ्वी को बहुत ही ज्यादा प्रभावित किया है। एंथ्रोपोसीन इतिहास में कांस्य और लौह युग के बाद का समय माना जा रहा है।इस अध्ययन में 1980 के दशक के सैटेलाइट के आंकड़ों, विभिन्न क्लाइमेट मॉडल को शामिल किया गया था। यह सैटेलाइड के प्रक्षेपपथ, उनकी कक्षाओं में जीवनकाल, रेडियो तरंगों का प्रतिपादन, और ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम की कारगरता एवं अंतरिक्ष आधारित नेविगेशन सिस्टम को प्रभावित कर सकता है।