नई दिल्ली। कोरोना से बचाव के तहत राजधानी दिल्ली में घोषित लॉकडाउन को एक महीने से अधिक हो गया है। बंदी से जहां बड़े कारोबारी परेशान हैं, वहीं मजदूर व छोटे कामगारों को इसने बुरी तरह बेहाल कर दिया है। आलम यह है कि रोजाना दिहाड़ी या एक निश्चित आय से जीवन की गाड़ी चलाने वाले मजदूरों व छोटे कामगारों की आय ठप होने से सहारे या उधार पर जिंदगी की गाड़ी घसीटनी पड़ रही है। बंदी में मजदूर व छोटे कामगार किन हालातों और परेशानियों का सामना कर रहे हैं। एक रिपोर्ट 42 साल के अयोध्या प्रसाद बिहार के रोहताश के रहने वाले हैं। वह दो भाई दिलशाद गार्डन के समीप झुग्गी में रहते हैं। अयोध्या जहां साइकिल व गाड़ी का पंचर बनाते हैं वहीं उनके छोटे भाई इन दिनों छोटा मोटा काम तलाश रहे हैं। अयोध्या के भाई सुरेश ने बताया कि स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। काम का जैसे अकाल पड़ गया है। लॉकडाउन व कोरोना के कारण लोग घरों में भी काम नहीं करा रहे हैं। जबकि पिछली बार ऐसा नहीं था। वह बताते हैं कि पंचर की दुकान खोल नहीं सकते। सब्जी बेचने की कोशिश की लेकिन अब सब लोग सब्जी ही बेच रहे हैं इसलिए इसमें फायदा नहीं है यह कच्चा सौदा है। गांव भी नहीं जा सकते। गांव में काम होता तो यहां क्यों आते। इसलिए अब मुश्किल के बाद भी यहां डटे हुए हैं। हमें उम्मीद है कि लॉकडाउन जल्द हटेगा क्योंकि कोरोना के केस भी कम हो रहे हैं। इसलिए हम लोगों का काम भी शुरू होने की उम्मीद है। कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को काबू करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा लॉकडाउन लगाने से दिहाड़ी मजदूरों की हालत बहुत खराब है। पूर्वी दिल्ली के गांधी नगर में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले अशोक सिंह ने बताया कि जब से लॉकडाउन लगा है, खाने के राशन के लिए पूरी तरह से सरकार पर निर्भर हो गए हैं। पहले रोजाना कुछ कमा लेते थे, जिससे बच्चों और परिवार के बाकी लोगों के खाने-पीने का इंतजाम हो जाता था। अशोक सिंह ने बताया कि गांव जा नहीं सकते, वहां कई लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है। वहां जाना खतरे से खाली नहीं है, दिल्ली में कम से कम इलाज तो मिल जाएगा। अशोक ने बताया कि परिवार में छ: लोग हैं, सभी का खाना सरकारी स्कूल से मिल रहा है। वहां बना हुआ खाना मिल जाता है, लेकिन किसी दिन अगर वह बंद हो गया तो परिवार के लोगों को मुश्किल हो जाएगी।

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