नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिकों ने हाल में पाया है कि कैंसर पैदा करने वाले वायरस एप्सटिएन-बार्र वायरस (ईबीवी) सेंट्रल नर्वस सिस्टम में ग्लियल सेल्स या गैर-न्यूरल सेल्स को प्रभावित करते हैं और फॉसफो-इनोसिटोल्स (पीआईपी) एक प्रकार का लिपिड, ग्लाइसेरोल तथा कॉलेस्टौरेल जब वायरस ब्रेन सेल्स को प्रभावित करता है, जैसे मोलेक्यूल को बदल देता है। यह अध्ययन न्यूरोडीजेनेरेटिव पैथोलॉजी में वायरस की संभावित भूमिका, विशेष रूप से इस तथ्य को देखते हुए कि वायरस अल्झाइमर, पार्किन्सन तथा मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसे न्यूरोलॉजिकल विकारों से प्रभावित रोगियों के ब्रेन टिश्यू में पाया गया है, को समझने की दिशा में रास्ता प्रशस्त कर सकता है। ईबीवी नैसोफैरिनजीयल कार्सिनोमा (सर तथा गर्दन का एक प्रकार का कैंसर), बी-सेल्स (एक प्रकार का व्हाइट ब्लड कैंसर), पेट का कैंसर, बुर्केटस लिम्फोमा, हाजकिन का लिम्फोमा, ट्रांसप्लांट के बाद का लिम्फॉयड विकार इत्यादि जैसे कैंसर का कारण बन सकता है। वयस्क आबादी के 95 प्रतिशत से अधिक ईबीवी पॉजिटिव हैं। बहरहाल, अधिकंश मामलों में संक्रमण का कोई लक्षण नहीं होता और उन कारकों के बारे में बहुत कम ज्ञात होता है जो ऐसे रोग के विकास को जन्म देते हैं। न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों वाले मरीजों में वायरस का पता चलने के बाद वायरस के संचरण के तंत्र की खोज को गति प्रदान की गई। इंदौर में भौतिकी विभाग (डॉ राजेश कुमार के नेतृत्व में) तथा बायोसाईंस और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग (डॉ. हेम चंद्र झा) विभाग के वैज्ञानिकों की टीमों ने अपने समन्वयक नई दिल्ली के राष्ट्रीय पैथोलॉजी संस्थान (आईसीएमआर) डॉ. फौजिया सिराज के साथ मिल कर वायरस के प्रसार तंत्र का पता लगाने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ‘एसएंडटी अवसंरचना सुधार के लिए फंड’ स्कीम द्वारा समर्थित रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी सिस्टम का उपयोग किया। रिसर्च स्कॉलर दीक्षा तिवारी, श्वेता जखमोला और देवेश पाठक ने भी हाल ही में ‘एसीएस ओमेगा’ में प्रकाशित इस अध्ययन में योगदान दिया।

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