नई दिल्ली। विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के भीतर पनप रहे असंतोष से केंद्रीय नेतृत्व की चिंता कम नहीं हो रही है। एक के बाद एक प्रदेश में अंदरुनी कलह पनप रही है। पार्टी शासित राज्यों के साथ उन प्रदेशों में भी झगड़ा बढ़ रहा है, जहां पार्टी वर्षों से सत्ता से बाहर है और वापसी की कोई उम्मीद भी नहीं है। कांग्रेस की इस वक्त सिर्फ तीन राज्यों में सरकार है। पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़। इसके साथ पार्टी महाराष्ट्र और झारखंड सरकार में शामिल है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू का झगड़ा सुलझाने में पार्टी का सांस फूल रहा है। वहीं, इसके बाद छत्तीसगढ़ तैयार है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच कई मुद्दों पर टकराव है। राजस्थान कांग्रेस में झगड़ा अभी थमा नहीं है। पश्चिम बंगाल में पार्टी की सत्ता में वापसी की कोई उम्मीद नहीं है, पर वहां भी पार्टी नेता संगठन में पद को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। कुल मिलाकर पार्टी के सामने टेंशन ही टेंशन है। रणनीतिकार मानते हैं कि प्रदेशों में झगड़ा बढ़ने का कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर ऊहापोह की स्थिति है। इसके साथ अध्यक्ष के राजनीतिक सलाहकार की रिक्ता भी बड़ी वजह मानी जा रही है। वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस के पास ऐसा कोई कद्दावर नेता नहीं है, जो पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचने से पहले ही यह झगड़े सुलझा दे। विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने अभी तक सिर्फ केरल में बदलाव किया है। पर नई नियुक्तियों के खिलाफ पुराने नेता एकजुट हो गए हैं और उन्होंने पार्टी पर दबाव बढ़ा दिया है। असम में विधायक दल का नेता नहीं बनाने से नाराज रुपज्योति कुर्मी पार्टी छोड़ चुके हैं। अब प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर वरिष्ठ नेता प्रद्युत बारदोलोई और भूपेन बोरा आमने-सामने हैं। उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं, पर गुटबाजी के चलते पार्टी कई दौर की बैठक के बावजूद विधायक दल का नेता का नाम तय नहीं कर पा रही है। हिमाचल प्रदेश में भी पार्टी नेता कुलदीप राठौर और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह में झगड़ा बरकरार है। झारखंड, बिहार और मध्य प्रदेश में भी स्थिति अलग नहीं है। ऐसे में कांग्रेस की चिंता अभी और बढ़ सकती है।

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