नई दिल्ली। कोवैक्सीन के आयात में हुए भारी भ्रष्टाचार को लेकर ब्राजील की जनता सड़कों पर उतर आई है। ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो एवं सरकार से इस्तीफे की मांग हो रही है। कोरोना में 5 लाख से अधिक मौतें होने एवं सरकार द्वारा समय पर बैक्सीन उपलब्ध नहीं करा पाने से जनता नाराज है। कोवैक्सीन की महंगी दरों एवं रिश्वत खोरी के लिए बैक्सीन की सप्लाई में हुई देरी से ब्राजील की जनता नाराज होकर सड़कों पर है। ब्राजील में इस सौदे की जांच शुरु हो गई है। वहीं भारत में कोवैक्सीन घोटाले को लेकर रहस्यमय चुप्पी बनी हुई है। इससे अंर्तराष्ट्रीय जगत में कोवैक्सीन निर्माता एवं भारत सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े होने लगे हैं।
ब्राजील में कोवैक्सीन के भारत से आयात में कथित वित्तीय अनियमितता और भृष्टाचार के विरोध में जनता राष्ट्रपति के खिलाफ सड़कों पर है। ब्राजील की सरकार पर भी संकट मंडरा रहा है। उधर भारत में इस मामले में आईसीएमआर संदेह के घेरे में है जिसने कथित रूप से अपने मुनाफे की परवाह किये बगैर भारत बायोटेक द्वारा मेडिसिन बायोटेक को सस्ते में कोवैक्सीन बेचने का करार करने दिया। वहीं ब्राजील में डेढ़ डॉलर की वैक्सीन के दाम कई गुना बढ़ने पर सवाल उठाये जा रहे हैं कि आखिर कीमत में यह अंतर किसके लाभार्थ पैदा किया गया।
कांग्रेस ने सरकार की हिस्सेदारी वाले इस टीके से संबंधित सौदे में अनियमितता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्र सरकार और स्वास्थ्य मंत्री से जवाब मांगा था। सवाल यह भी है कि केंद्र सरकार ने जब टीकों के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी, तो फिर भारत बायोटेक से जुड़े इस सौदे को जारी रखने की अनुमति कैसे दी गई? इस प्रश्न पर स्वास्थय मंत्रालय के अधिकारी निरुत्तर हैं।
दरअसल ब्राजील के साथ भारत बायोटेक के कोविड-19 टीके कोवैक्सीन की दो करोड़ डोज खरीदने पर सहमत हुई थी किन्तु ब्राजील की सरकार ने समझौते में अनियमितताओं के आरोप लगने के बाद इस करार को निलंबित करने की घोषणा कर दी थी।
इसके बाद भारत बायोटेक ने एक बयान में कहा कि उसे अभी ब्राजील से टीका के लिए अग्रिम भुगतान नहीं हुआ है। हैदराबाद की दवा निर्माता कंपनी ने कहा कि कंपनी ने करार, नियामक मंजूरियों और आपूर्तियों के लिहाज से ब्राजील में भी उन्हीं नियमों का पालन किया, जिनका उसने दुनिया के अन्य देशों में कोवैक्सीन की सफल आपूर्ति के लिए किया है।
भारत बायोटेक एक निजी कंपनी है। इसने आईसीएमआर के साथ मिलकर कोवैक्सीन का निर्माण किया था। आईसीएमआर के साथ इस कंपनी की साझेदारी की वजह से सरकार की भी प्रत्यक्ष भूमिका है। इसमें सरकारी खजाने का पैसा लगा है। इसलिए सरकार की जवाबदेही तय है। कोवैक्सिन का विकास और निर्माण करने वाली भारतीय दवा कंपनी भारत बायोटेक के साथ अनुबंध को निलंबित करने का ब्राजील का निर्णय ब्राजील के संघीय अभियोजकों और सांसदों द्वारा अनुबंध की चल रही जांच के बीच आया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय में एक व्हिसलब्लोअर द्वारा रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद, कोवैक्सिन अनुबंध संसदीय जांच आयोग (सीपीआई) का मुख्य मुद्दा बन गया, जो ब्राजील सरकार द्वारा महामारी से निपटने की जांच कर रहा है। अन्य बातों के अलावा, टीके की खुराक की कीमत का विवाद का राजनैतिक रुप ले चुका है।
को-वैक्सीन की आपूर्ति ब्राजील में बहुत बड़े भ्रष्टाचार का कारण बन चुकी है। वहां संसदीय जांच हो रही है। टीकों की खरीद के अनुबंध को निलंबित कर दिया गया है। भारत में कांग्रेस यह आरोप लगा रही है को- वैक्सीन को लेकर पहला आरोप है कि कोवैक्सीन का दाम बड़े स्तर पर बढ़ाया गया है। पहले इस टीके को करीब 1.5 डॉलर प्रति खुराक की दर से देने का प्रस्ताव दिया गया था, बाद में कीमत को बेतहाशा बढ़ाकर सौदे में बड़े पैमाने पर भ्रष्ट्राचार हुआ है।
दूसरा आरोप सिंगापुर स्थित कंपनी ‘मेडिसिन बायोटेक को लेकर है। इसके संस्थापक ही भारत बायोटेक के संस्थापक हैं। सिंगापुर की इस कंपनी ने ब्राजील से 4.5 करोड़ डॉलर का अग्रिम भुगतान मांगा। ब्राजील में इसको लेकर सवाल किया गया कि जब मेडिसिन बायोटेक से अनुबंध का कोई सीधा संबंध नहीं है, तो फिर वह अग्रिम भुगतान क्यों मांग रही है?
ऐसे आरोप हैं कि भारत बायोटेक ने पहले मेडिसिन बायोटेक को सस्ते में टीका बेचता था। मेडिसिन बायोटेक इसे आगे महंगे में बेचता था। इसका मतलब था कि आईसीएमआर को इस सौदे में भारी नुकसान हुआ।
सवाल यह है कि क्या सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं है कि यह पता किया जाए कि मेडिसिन बायोटेक की क्या स्थिति है, उसका बायोटेक से किस तरह का संबंध था? जब टीकों के आपूर्ति पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, तो कोवैक्सीन के निर्यात के इस सौदे को जारी रखने की अनुमति कैसे मिली?
ब्राजील में भी सवाल उठाए गए हैं कि सरकार ने भारत बायोटेक के साथ एक त्वरित समझौता क्यों किया जबकि अमेरिकी फर्म फाइजर कम कीमत पर प्रस्ताव दे चुकी थी जिन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।
सौदे में कैसे आया पेंच
इस साल मार्च के अंत में, ब्राजील की स्वास्थ्य नियामक एजेंसी, जिसे अंविसा के नाम से जाना जाता है, ने कोवैक्सिन के आयात की अनुमति देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसके अधिकारियों ने पाया कि हैदराबाद स्थित संयंत्र जिसमें वैक्सीन बनाया जा रहा है, गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी) आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है। जीएमपी दवा निर्माताओं के लिए टीके के आपातकालीन उपयोग के लिए प्राधिकरण प्राप्त करने के लिए एक शर्त है।
जब भारत बायोटेक ने जनवरी में प्रीसीसा मेडिकामेंटोस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, तो कंपनी के फार्मास्युटिकल निदेशक इमानुएला मेड्रेड्स ने कहा था- “हमने अत्यधिक तकनीकी, वैज्ञानिक और स्वच्छता नियंत्रण स्तरों की पहचान की। क्लिनिकल ट्रायल में भी बेहतरीन नतीजे आए, जो जल्द ही प्रकाशित किए जाएंगे। भारत बायोटेक ने दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन आपूर्तिकर्ताओं के स्तर पर गुणवत्ता और सुरक्षा का प्रदर्शन करते हुए हमारी अपेक्षाओं को पूरा कर लिया है।”
25 मई को, भारत बायोटेक ने प्रमाणन के लिए ब्राजील के अधिकारियों को एक नया प्रमाण पत्र दिया।
4 जून को अन्विसा से आपातकालीन उपयोग की स्वीकृति कुछ शर्तों के साथ मिली। कहा गया कि सबसे पहले, ब्राजील कोवाक्सिन की चार मिलियन खुराक प्राप्त करेगा जिसके बाद अंविसा डेटा का विश्लेषण करेगी और आयात की जाने वाली अगली मात्रा का आकलन करेगी।
ब्राजील में स्वास्थ्य रसद विभाग के आयात प्रमुख लुइस रिकार्डो मिरांडा और उनके भाई, लुइस मिरांडा, कोवैक्सिन अनुबंध की चल रही जांच में प्रमुख गवाह हैं।
पिछले हफ्ते संघीय अभियोजक के कार्यालय को दिए एक बयान में, मिरांडा ने लेफ्टिनेंट कर्नल एलेक्स लियाल मारिन्हो सहित वरिष्ठों से कोवैक्सिन की खरीद के लिए “असामान्य दबाव” डालने का बयान दिया है।
मिरांडा और उनके भाई ने यह भी आरोप लगाया है कि उन्होंने मार्च में बोल्सोनारो से मुलाकात की और अनुबंध के बारे में चिंता जताई लेकिन सौदे की जांच के लिए उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की।
मिरांडा और उनके भाई के अनुसार, बोल्सोनारो ने माना कि स्थिति गंभीर है और उन्हें बताया कि एक अन्य सांसद, रिकार्डो बैरोस, भारत बायोटेक सौदे में शामिल था।
बैरोस मध्यस्थ कंपनी दावती मेडिकल सप्लाई द्वारा आयोजित एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के लिए एक सौदे से भी जुड़ा है, जिसकी वर्तमान में कथित रिश्वत के लिए जांच की जा रही है।