नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने फंसा हुआ कर्ज (एनपीए) से संबंधित अपने 23 मार्च 2021 के फैसले के स्पष्टीकरण और संशोधन की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश के जरिए ऋण खातों को एनपीए के रूप में घोषित करने पर रोक हटा दी थी। अर्जी में 90 दिन की मोरेटोरियम अवधि के बाद किसी भी खाते को खाते को एनपीए घोषित करने के लिए बैंकों को निर्देश देने की मांग याचिकाकर्ता वकील विशाल तिवारी ने याचिका दाखिल कर यह गुहार लगाई थी कि किसी भी खाते को एनपीए घोषित करने की अवधि की गणना निर्णय की तारीख (23 मार्च) से हो और इस तारीख के 90 दिन की मोरेटोरियम अवधि के बाद किसी भी खाते को खाते को एनपीए घोषित करने के लिए बैंकों को निर्देश दिए जाएं।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने शुक्रवार को तिवारी से कहा, पुराने मामले में याचिका दाखिल पर राहत की मांग नहीं की जा सकती। इसके बाद तिवारी ने अपनी याचिका वापस ले ली। दरअसल, पिछले वर्ष सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश पारित किया था कि जो खाते 31 अगस्त तक एनपीए नहीं थे, उन्हें एनपीए घोषित नहीं किया जाना चाहिए। यह आदेश महामारी के कारण ऋण मोहलत के विस्तार, चक्रवृद्धि ब्याज की छूट आदि की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया था। शीर्ष अदालत ने 23 मार्च 2021 के फैसले के माध्यम से याचिकाओं का निपटारा करते हुए खातों को एनपीए घोषित करने पर लगी रोक हटा दी थी।














