मदरलैंड संवाददाता,नई दिल्ली। बाबा साहब बी.आर.अम्बेडकर प्रदत्त मूलमंत्र ‘शिक्षित बनो’ एवं संस्कृत सुभाषित ‘सा विद्या या विमुक्तये’, दोनों ही, शिक्षा को मानवीय सशक्तिकरण द्वारा भयमुक्ति का साधन मानते हैं। परन्तु, देश की राजधानी में सौ वर्षों से सुस्थापित, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों का व्यवहार उपर्युक्त संदर्भ में एकदम विपरीत रहा है। उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त 2019 को विश्वविद्यालय के एक पत्र, जिसमें गोलमटोल भाषा द्वारा तदर्थ से अतिथि शिक्षक बनाने का वर्णन था, इन्हें इतना भयभीत व गुमराह कर सकता है, यह जानकर संदेह होता है कि क्या हम वास्तव में इस महान विश्वविद्यालय के शिक्षक हैं?

अफवाहों का बाजार

विश्वविद्यालय विगत पाॅंच वर्षो में जिन अफवाहों का बाजार बना एवं जिन्होंने शिक्षकों को गुमराह किया, उनमें प्रभुख हैं – शिक्षकों की पदोन्नतियां एवं तदर्थों की स्थाई नियुक्तियां सरकार ने रोकी हुई हैं, तदर्थों का एब्जोर्पसन सम्भव है, यदि तदर्थों का नियमितीकरण हुआ तो अधिकांश की सेवाएं समाप्त होंगी, प्रमोशन चयन समिति से होगा अतः अधिकतर अयोग्य घोषित होंगे, तथा संघटक काॅलेजों में प्रोफेसर के रूप में पदोन्नति कभी भी नहीं होगी। इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, शिक्षकों के समस्त स्थाई पद समाप्त कर देगी। वे कुछ राज्य विश्वविद्यालयों  तथा यहीं राजधानी स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में हो रही अनवरत शिक्षक भर्तियों एवं पदोन्नतियों के यथार्थ को भी अनदेखा कर रहे थे।

डुटा की भूमिका

उपर्युक्त अफवाहों के प्रति, विश्वविद्यालयों स्तरीय कतिपय शिक्षक समूहों के साथ-साथ, देश के अग्रणी षिक्षक संगठन, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डुटा) की भूमिका प्रंशसनीय नहीं रही। अलबत्ता, डुटा एवं अन्य सरकार विरोधी शिक्षक समूहों ने इन अफवाहों का, अपनी राजनीतिक सुविधानुसार धोर नकारात्मकता का वातावरण बनाने हेतु दुरूपयोग किया जो कि शिक्षक हितों के विपरीत था। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा नियुक्तियों, पदोन्नतियों एवं अन्य सेवा शर्तो बाबत जुलाई 2018 में अधिसूचित रेगुलेषन्स को विश्वविद्यालय ने 15 माह बाद प्रावधानों में अंगीकृत किया। परन्तु, डुटा ने इसे शीध्र लागू करवाने के लिये विश्वविद्यालयों प्रशासन पर दबाव नहीं बनाया। 2010 के बाद जारी यू.जी.सी. के कई रेगुलेशन्स पदोन्नतियों के रास्ते के पत्थर बने हुए थे जिससे आभास होता था कि शिक्षक प्रमोशन समाप्त कर दिए गए हैं। जबकि 2018 के रेगुलेशन्स ने पदोन्नतियों के रास्ते को साफ कर दिया था, परन्तु इन्हें लागू करवाने एवं प्रक्रिया शुरू करवाने में डुटा का व्यवहार अनुकरणीय नहीं रहा।

उपकुलपति की नीयत एवं नीति

उपकुलपति प्रो. वाई. के. त्यागी ने अपने क्रिया-कलापों में ‘कुछ न करने की कला’ में महारत हासिल करने हेतु टूलकिट इजाद कर रखा था। उन्होंनें जीवन में अर्जित कानूनी ज्ञान का दुरूपयोग लम्बित कार्यों को जैसे-तैसे लटकाने में किया। स्मरणीय है कि, 18 जूलाई 2018 को अधिसूचित यू.जी.सी. रेगुलेशन्स को अकादमिक एवं कार्यकारी परिशद अनुमोदन हासिल कर विश्वविद्यालय अध्यादेश के रूप में अंगीकृत करवाने में उन्होंनें अक्टूबर-नवम्बर 2019 तक लगभग पन्द्रह माह का समय लगा दिया। देश का एक अग्रणी विश्वविद्यालय, जिसे अध्यादेश बनाने एवं क्रियान्वयन में आदर्श मुकाम हासिल था, वह फिसड्डी बना दिया गया।

प्रो. त्यागी में अकादमिक नेतृत्व क्षमता नहीं थी, उन्हें सत्ता के केन्द्रीयकरण में मजा आता था, किसी भी अधीनस्थ, चाहे सम-उपकुलपति ही क्यों न हों, पर उन्हें विश्वास नहीं था। फलस्वरूप, स्वयं के निलम्बन तक साढे़ चार वर्ष में अपनी कार्य टोली भी नहीं बनाई। विधि संकाय में हुई कतिपय नियुक्तियों को छोड़, उनके कार्यकाल में शैक्षणिक या अशैक्षणिक नियुक्तियां नहीं हुई जबकि लगभग 5000 शैक्षणिक एवं 1000 से अधिक अशैक्षणिक रिक्तियों के कारण विश्वविद्यालय को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनके समय न कोई पदोन्नतियां हुई, न ही सेवानिवृत शैक्षणिक-अशैक्षणिक स्टाॅफ के पेंशन के मामले सुलझे। अलबत्ता, उन्होंने पेंशन के मामलों को अपने विधि ज्ञान के द्वारा उलझाया।

विश्वविद्यालय से जुड़ी गतिविधियों के तजुर्बेकारों का मत है, कि वे ऐसा विपक्षी पार्टियों के राजनैतिक एजेन्डे के तहत, केन्द्र सरकार को बदनाम करने के इरादे से कर रहे थे। इसके अलावा, वे विश्वविद्यालय शिक्षकों की स्थानीय राजनीति में किसी गु्रप को फायदा एवं किसी को नुकसान पहुंचाने की मंशा से कर रहे थे, यह तथ्य अब आम है। उनकी इसी क्षुद्र राजनीति के फलस्वरूप, 28 अगस्त 2019 वाले पत्र की प्रतिक्रिया, 4 दिसम्बर 2019 को ऐतिहासिक वाईस-रीगल लाॅज (उपकुलपति कार्यालय) में अभूतपूर्व तोड़फोड़ तथा 3-4 माह तक तदर्थों के अनवरत धरने के रूप में प्रकट हुई। परिणामस्वरूप, विश्वविद्यालय के स्वायत्ताधिकार में, केन्द्र सरकार ने दखल देकर स्थिति को सम्भाला। तथापि प्रो. त्यागी का रवैया बदस्तूर रहा। हाॅं, इस दौरान, उनके इर्द-गिर्द गैर-सरकारी नकारात्मक लोगों की संख्या में वृद्धि हुई, जो उनकी सर्वविदित निष्क्रियता के बावजूद, दिन-रात सामाजिक मीडिया पटलों पर गुण-गान करते रहते थे।

कमजोर निर्णय क्षमता एवं अप्रजातंत्रिक कार्यशैली

प्रो. त्यागी ने वाणिज्य एवं हिन्दी विभागाध्यक्षों के कार्यकाल पूर्ण होने के बाद अगले विभागाध्यक्षों की नियुक्ति का निर्णय लेने में 4-5 माह का समय लगाया। इसी प्रकार डेढ़ दर्जन महाविद्यालयों में प्राचार्यो की नियमित नियुक्तियां नहीं हुई। जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नियमित प्राचार्यों की नियुक्ति हेतु उपकुलपति को कई बार निर्देशित किया। इसी प्रकार, सहायक प्रोफेसरों के पदों पर नियमित नियुक्तियों हेतु 2017 में माननीय उच्च न्यायालय एवं अप्रैल 2019 से मासिक तौर पर यू.जी.सी. ने आधा दर्जन से भी अधिक बार निर्देश दिए। परन्तु विश्वविद्यालय में सक्रिय शिक्षक समूहों की प्रतिस्पद्र्धात्मक राजनीति एवं कानूनी ज्ञान के दुरूपयोग के साथ-साथ धोर अनैतिकता का प्रदर्शन कर अकर्मण्यता का परिचय दिया। उनका कार्यकाल विश्वविद्यालय की ए.सी./ई.सी. तथा यूनिवर्सिटी कोर्ट के प्रति अनदेखी के लिए भी कुख्यात रहा। कहा जा सकता है कि प्रजातांत्रिक मूल्यों के मामले में उनकी कथनी एवं करनी में विरोधाभास था।

धोर शर्मिन्दगी

इस दौरान, कई बार ऐसे पल भी आए जब विश्वविद्यालय के पुराने छात्र/शिक्षक या कर्मचारी होने के भावनात्मक लगाव के चलते प्रबन्धन की कमी ने शर्मसार किया। उदाहरणार्थ, जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने उत्तीर्ण छात्रों को डिग्री प्रदान कराने का निर्देष दिया तो विश्वविद्यालय का जवाब कि जिस कागज पर डिग्री छपती है, वह कागज उपलब्ध नहीं है, न ही उसके लिये टेण्डर किया गया था। मजबूरन, न्यायालय की निगरानी में एक टीम का गठन हुआ एवं डिजिटल डिग्रियों का मार्ग प्रशस्त हुआ। प्रबन्धन की इच्छाशक्ति से, यह कार्य बिना न्यायालीयय हस्तक्षेप से, पहले ही किया जा सकता था। दूसरा उदाहरण, शोधार्थियों के शोध ग्रंथ जमा कराने एवं उनके परिणाम घोषित कराने हेतु भी न्यायालय का हस्तक्षेप हुआ, जो अनावश्यक था। और तो और, सौ वर्ष के इतिहास में विश्वविद्यालय के पुस्तकालय द्वारा मंगाई जाने वाली रिसर्च जर्नल्स, समय पर आवश्यक शुल्क न चुकाने के अभाव में, आनी बंद हो गई। इसी प्रकार ऐसे बहुत से मामले थे, जिन्हें या तो न्यायालय जाना पड़ा या विकासार्थ आए सैकड़ों करोड़ सरकार को वापस हुए। कई घ्वजवाहक प्रकल्प यथा जीवन पर्यन्त्र शिक्षा संस्थान, कलस्टर इनोवेशन सेन्टर, डिजिटलाईजेशन को प्रतिबद्ध एवं प्रतिष्ठित दिल्ली विश्वविद्यालय कम्प्यूटर सेन्टर इत्यादि को किनारे कर दिया गया। कार्य निष्पादन में होने वाले अनावश्यक विलम्ब से छात्र, शिक्षक एवं अशैक्षणिक कर्मचारी, इस दौरान कई ऐसे अवसर चूक गए, जो जीवन में एक बार ही आते हैं। पुराने छात्र एवं कर्मचारी, प्रसिद्ध फुटबाल खिलाड़ी व कमेंटेटर नोवी कपाड़िया की वैद्य पेंशन शुरू नहीं हुई, न ही उन्हें कोई आर्थिक सहायता मिली, जिससे वे अपना ईलाज भी नहीं करवा सके, इसी बेबसी में उनकी मृत्यु हो गई।

पदोन्नतियों की सुनामी

शिक्षक पदोन्नतियों में आ रहे व्यवधानों को प्रोमोशन मैन प्रो.ए.के.भागी एवं टीम एन.डी.टी.एफ. ने यू.जी.सी. एवं शिक्षा मंत्रालय स्तरों पर समय-समय पर दूर करवाया जिससे पदोन्नतियों की सुनामी आई। बहरहाल, पिछले 15 वर्ष से भी अधिक समय से लम्बित 4000 से अधिक एसोशियट प्रोफेसर स्तर तक के प्रमोशनों में 95 प्रतिशत की प्रक्रिया सम्पन्न हो चुकी है। यही नहीं, महाविद्यालयों में 150 से अधिक प्रोफेसर पदों पर पदोन्नति का विश्वविद्यालय के 100 वर्ष के इतिहात में पहली बार क्रियान्वयन हुआ है। यह अभूतपूर्व है, जिसका होने का किसी को विश्वास नहीं था। विश्वविद्यालय के विभागों में एसोसिएट प्रोफेसरों, प्रोफेसरों की सभी पदोन्नतियाॅं सम्पन्न होने के साथ-साथ वरिष्ठ प्रोफेसरों की पदोन्नतियाॅं भी नियमानुसार हो रही है।

वर्तमान उपकुलपति, डीन ऑफ कालेजेज, निदेषक साऊथ कैम्पस तथा रजिस्ट्रार एवं उनकी समस्त टीम ने इस कार्य को एक मिशन के तहत दिन-रात कार्य कर पूरा किया है। इसी दौरान, इन्होंनें कई वर्षो से लटके हुऐ सेवानिवृत शैक्षणिक एवं अशैक्षणिक कर्मचारियों के पेंशन के लगभग सभी मामले निश्पादित कर दिए हैं। यह योगदान विश्वविद्यालय इतिहास में दर्ज काबिल है। स्पष्ट है, किसी भी संगठन में, मानव संसाधन एवं गतिशिल नेतृत्व द्वारा ही लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं। इस गति से सम्पन्न पदोन्नतियों में टेक्नाॅलोजी का सकारात्मक योगदान रेखांकित हुआ, जिसके कारण ऑनलाईन चयन समितियों को कोरोना काल में आवागमन के बंधन से मुक्त रखा एवं कई सदस्यों का एक दिन में 2-3 चयन बैंठकों में भाग लेना सम्भव हुआ। वर्तमान परीक्षा डीन एवं निदेषक कम्प्यूटर सेन्टर की टीम द्वारा, दीक्षान्त समारोह-2020 में, एक साथ दस लाख डिजिटल डिग्रियों का जारी किया जाना, आम छात्र को राहत देने वाला साबित हुआ।

भावी राह

अज्ञात भय को त्याग दृढ़ संकल्ति होकर नियमानुसार नियुक्ति प्रक्रिया हेतु विश्वविद्यालय से सकारात्मक सहयोग द्वारा यह कार्य 6-7 माह में पूरा हो सकता है। इस हेतु शिक्षक अपनी योग्यता पर विश्वास करें एवं भय की फसल काटने वालों के झांसों से बचें। कई 15-16 वर्षों से भी अधिक समय से पढ़ा रहे, वरिष्ठ तदर्थ साथियों द्वारा काॅलेजों में उनके द्वारा किए गए शैक्षणिक एवं सह-षैक्षणिक गतिविधियों द्वारा अर्जित साख के अतिरिक्त 5 दिसम्बर 2019 का रिकार्ड ऑफ डिस्कसन्स व समय-समय पर यू.जी.सी. द्वारा जारी प्रावधानों द्वारा उन्हें अनुभव आधारित अकादमिक अंकों की बढ़ोतरी व साक्षात्कार हेतु बुलावे की छूट प्रदान की हुई है।

परन्तु, हमें अपना व्यवहार विवेकशिल बनाना होगा तथा एब्र्जापसन शब्द के कपोल कल्पना लोक से बाहर आना होगा। क्या यह सच नहीं है कि पिछले पाॅंच वर्षों में कतिपय काॅलेजों की प्रबन्ध समितियों द्वारा एब्र्जापसन हेतु पारित संकल्पों से हासिल कुछ भी नहीं हुआ? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक दषक से अधिक वर्षो का इतिहास जानने के बावजूद, हम विष्वविद्यालय के चन्द सपनों के विक्रेताओं के मोहपाश में फंसकर अपनी ही हानि कर रहे हैं। हमें डाॅ. अम्बेडकर प्रदत्त मूलमंत्र शिक्षा ने सशक्त एवं निडर बनाया है, अब आवश्यकता  है नियमानुसार नियमितीकरण के पक्ष में निर्णय की, जिससे कि जैसे 4000 से अधिक विभिन्न स्तरों की पदोन्नतियाॅं, 150 से अधिक प्रोफेसरों की पदोन्नतियां अब इतिहास बन चुकी हैं वैसे ही 5000 से अधिक तदर्थ साथियों का नियमितीकरण शीध्र सम्पन्न होकर इतिहास बन जाए।

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