सुपौल : जिले के निर्मली प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत डागमरा पंचायत के चुटियाही गांव के समीप सिकरहट्टा मझारी निम्न बांध सह सड़क कोसी नदी के तेज बहाव के कारण लगभग 20 फ़ीट टूट गई है। टूटी हुई सड़क से पानी का बहाव काफी तेजी से होकर तिलयुगा नदी की ओर हो रहा है। जिस कारण प्रखंड क्षेत्र के कुनौली, डगमारा, कमलपुर, सोनापुर, दिघीया, हरियाही, मझारी सहित मधुबनी जिला के बगेवा, बनगामा, झिटकी, नरहिया, अन्धरामठ आदि गांवों पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। इन गांवो के लोग अपने और अपने परिवार वालों की जान बचाने के लिए ऊंचे स्थान पर पलायन करना शुरू कर दिया है।
वहीं प्रखंड क्षेत्र के आधा दर्जन से अधिक गांव के लोग अपने घर को छोड़कर जरूरत के सामान के साथ सुरक्षित स्थल पर भी चले गए है। सुरक्षा बांध टूटने के कारण निर्मली नगर पर भी बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। हालांकि सुरक्षा बांध टूटने की खबर पर प्रशासन भी सक्रिय दिख रहा है। बाढ़ से प्रभावित इलाके में बचाव कार्य के लिए स्थानीय गोताखोर की टीम को भी तैनात किया गया है।
इधर सुरक्षा बांध टूटने की सूचना मिलते ही सुपौल DM महेंद्र कुमार व SP मनोज कुमार ने अपने दल बल एवं गोताखोर की टीम को लेकर स्थिति का जायजा लेने के लिए पहुंच गए।
वहीं DM ने बताया कि कटाव स्थल का जायजा लिया गया है। जल्द से जल्द कटाव निरोधी कार्य करने का आदेश दिया गया है। ताकि कोसी नदी का पानी तिलयुगा नदी में प्रवेश न कर सके और बाढ़ का खतरा टल सके।
घटनास्थल का निरीक्षण करते हुए DM ने बताया कि शनिवार करीब 02 बजे बांध टूटने की सूचना प्राप्त हुई।
सूचना मिलते ही घटनास्थल पर पहुंच निरीक्षण किया गया है। साथ ही युद्ध स्तर पर बांध को बांधने का काम भी शुरू कर दिया गया है। वहीं पानी के तेज बहाव के कारण बांध टूटने पर किसकी लापरवाही है। उसके बारे में पूछा गया तो। उन्होंने स्थिति से निपटने का हवाला देते हुए उसके बारे में कुछ भी कहने से इनकार किया। वहीं SP मनोज कुमार ने बताया कि पानी के तेज बहाव के कारण जो बांध कटी उसके लिए इंजीनियर भी पहुंच चुके हैं। कटे हुए बांध को बांधने के लिए कार्य शुरू कर दिया गया है। जिससे जनता की जान बच सके। साथ ही स्थिति से निपटने के लिए गोताखोर टीम के साथ अन्य टीम भी आ चुकी है। स्थिति से निपटने के लिए हमलोग हर संभव प्रयास कर रहे हैं। जिससे जल्द से जल्द सभी को निजात मिल सके। आखिर सरकार बाढ़ से निपटने के लिए बांध बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करती है। फिर ऐसा क्यों हुआ। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है। आखिर इसमें किसकी गलती है। ठेकेदारों की या प्रशासन की या फिर सरकार की। आखिर कमी तो किसी न किसी की तो होगी हीं। अब देखना लाजमी होगा की ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो सके। उसके लिए सरकार या प्रशासन क्या कर रही है। किस हद तक स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन कामयाब होता है।

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